Saturday, August 24, 2013

I Cannot Understand Indian Politics

समझ से परे है यह राजनीति-

Published in Newspaper daily "Prabhat Khabar " 

on 25th August 2013


BY  ।।एम जे अकबर।।
(वरिष्ठ पत्रकार)

कौन कहता है कि डॉ मनमोहन सिंह की कोई नहीं सुनता? जानवर जरूर उनकी बात सुनते हैं. भारत के प्रधानमंत्री ने जब से भारतीयों से पशुवृत्ति (एनिमल स्पिरिट) जाग्रत करने को कहा है, दलाल स्ट्रीट (मुंबई शेयर बाजार) में भालुओं (मंदड़िये) ने उत्सव मनाना शुरू कर दिया है. हो सकता है कि हमारे पहले अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री का निर्देश, तजरुमा करने के दौरान अर्थ से भटक गया हो.

जरूर उन्होंने सांडों (तेजड़िये) से रास्ते में आनेवाले हर स्टॉक एक्सचेंज को फतह करने की उम्मीद लगायी होगी. पर, इसके उलट डरावने छोटे-छोटे भालू (मंदड़िये) लंबी नींद से जाग खड़े हुए और एक विनाशकारी सेना की तरह उन्होंने अर्थव्यवस्था को बेहाल और सरकार को असहाय बना कर छोड़ दिया. इसी बीच दूसरे किस्म की पशुवृत्ति को जगाते हुए भारतीय रुपये ने चिंपांजी का रूप धारण कर लिया है और अजीबोगरीब ढंग से हंसते हुए नीचे की ओर फिसला जा रहा है. उसे मालूम है, उसकी मंजिल रसातल है. 2013 के महान पशु बाड़े (एनिमल फार्म- जॉर्ज ऑरवेल का उपन्यास) के बेकाबू होने की वजह यह है कि इसके चौकीदारों ने इसका नक्शा ही नहीं इसकी जमीन भी गंवा दी है. हमारी अर्थव्यवस्था खुद से रची गयी बर्बादी का एक और शिकार भर है. राजनीतिक स्थिरता भी जजर्र स्थिति में है.

यूपीए सरकार का हालिया बर्ताव अजीबो-गरीब है. कांग्रेस राजनीतिक बिसात पर पराजित हो सकती है. ऐसा पहले भी हुआ है. लेकिन, उसके डीएनए में इतना अनुभव है कि वह संसद का सत्र मैनेज कर सके. संसद का चालू सत्र आत्महत्या का सबक है. संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ को देखकर लगता है कि वे या तो मूर्ख हैं, या प्रेत. चूंकि उनका रिकॉर्ड बताता है कि वे मूर्ख नहीं हैं, इसलिए कहा जा सकता है कि उन्हें रोबोट जैसा व्यवहार करने का निर्देश दिया गया है.

किसी भी संसद सत्र की तैयारी का मूल सिद्धांत अपनी प्राथमिकताओं का सही चुनाव करना होता है. यूपीए की घोषित प्राथमिकता खाद्य सुरक्षा विधेयक थी. उन्होंने इसे शुरू करने के लिए 20 अगस्त (राजीव गांधी का जन्मदिन) की तारीख भी तय कर रखी थी. इसके आगे सबकुछ काफी सहज था. सरकार को बस यह सुनिश्चित करना था कि जब सत्र चालू हो, तो माहौल नियंत्रण में रहे. विपक्ष सांप-छुछुंदर वाली स्थिति में था. वह न नहीं कह सकता था, लेकिन उसे हां कहने का भी मन नहीं था. इसके पीछे राजकोषीय कारण भी थे और राजनीतिक भी. यूपीए धूम-धड़ाके के साथ अपनी नैया कराने के लिए स्थिति था.  लेकिन, इसकी जगह सोनिया गांधी और उनके विश्वस्त दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में यूपीए ने तेलंगाना पर विवाद को न्योता दे दिया. यह निर्णय समझ से परे है. इस विवाद के गुबार ने मॉनसून सत्र पर ग्रहण लगा दिया. तेलंगाना का मसला कई वर्षो से मेज पर था. चार हफ्ते और रह सकता था.

प्रधानमंत्री खाद्य विधेयक के पारित होने के बाद सदन से इसकी घोषणा कर सकते थे. कोई फर्क नहीं पड़ता, अगर इसके बाद पूरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ जाता. यहां कुछ और चीजें आपको चौंका सकती हैं. आखिर क्यों सरकार ने कोयला घोटाले से जुड़ी फाइलों के गायब होने के मामले में सत्र के ठीक बीच में छिपाने और दबाने की अपनी आदत छोड़ दी? गायब फाइलों का मामला पहली बार मई में उजागर हुआ था, जब सीबीआइ निदेशक ने फाइलें नहीं मिलने के कारण जांच आगे बढ़ाने में अपनी अक्षमता जतायी थी. हम सबको इसका कारण पता है. सरकार इस पर्वताकार भ्रष्टाचार के कारण भारी मुसीबत में है. इसमें उसके चहेते उद्योगपति सांसद नवीन जिंदल और विजय दर्डा आरोपी हैं. इसमें रहस्य जैसा कुछ नहीं कि इन दोनों से जुड़ी फाइलें भी गुमशुदा की सूची में हैं. यह चोरी का मामला है. बहरहाल, छिपाने-दबाने का खेल कुछ देर और चलता तो सरकार का तुरंत कुछ नहीं बिगड़ता.

अगर सिर्फ संसदीय रणनीति के हिसाब से बात करें, तो प्रधानमंत्री ने गायब फाइलों पर पहले दिन ही बयान क्यों नहीं दिया? विपक्ष इसकी मांग कर रहा था और घोटाले के समय कोयला मंत्री होने के कारण यह प्रधानामंत्री का कर्तव्य बनता था. क्यों ऐसा बयान देने का वादा करने के लिए उन्होंने एक सप्ताह का समय लिया और इस तरह मॉनसून सत्र का एक चौथाई हिस्सा बर्बाद कर दिया! विपक्ष भले खाद्य सुरक्षा विधेयक को टालना चाहता हो, लेकिन इसे लटकाने के लिए सरकार ही जिम्मेवार है. इसका कारण समझ से परे है. सबसे ज्यादा नुकसान अक्षमता के कारण होता है, न कि दुर्भावना के कारण.

कहते हैं, हर पारी व्यर्थता के बिंदु पर आकर समाप्त होती है, लेकिन सिर्फ तब जब आपको यह नहीं पता होता कि अलविदा कब कहना है. डॉ सिंह को यह तुलना पसंद आयेगी, क्योंकि वे अमेरिका और अमेरिकी व्यापारियों को काफी पसंद करते हैं. माइक्रोसॉफ्ट कॉरपोरेशन का शेयर मूल्य सात फीसदी बढ़ गया, जब इसके सीइओ स्टीव बालमर ने यह घोषणा की कि वे रिटायर हो रहे हैं. किसी जमाने में बालमर माइक्रोसॉफ्ट के हीरो हुआ करते थे. भारत का शेयर मूल्य कितना बढ़ेगा, जब डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार त्यागपत्र दे देगी?

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