About hundred families suffered loss due to fault of all organiser of Durga Puja near Rail lines including that of administration and railways who completely ignored unlawful activity taking place in their command area. How administrative officers and railway staff remain in dark for such s long period that organiser of Puja carry out their act loudly without getting written permission from them. It is absolute negligence on their part.
I am very much sure that media men will cry on their TV channels for two to three days, politicians will play mutual blame game and police officers will play fantastic drama for a few days but none of guilty persons will be punished and none will be held accountable and responsible for such large scale killings of innocent men and women for unlawful act of organisers of Durga Puja.
I however expect that not only Punjab Government but all state governments will at least take lesson from the accident and formulate adequate and strict rules in this regard and ensure their strict compliances in future at least to stop recurrences of such accidents. If needed central government should also take lesson from the said accident and force concerned authorities to take all preventive steps to ensure that such accidents do not take place in future.
It is fortunate that the accident took place in a state where Congress Party is in power, otherwise politicians like Rahul Gandhi and Kejriwal could have saught resignation of PM Mr Narendra Modi and media could have executed Modi for lapses of administration. God bless Modi.
So far as officers in railways and administrative offices are concerned I have no hesitation in saying that they are not at all watchful of their assets and they are defaulting in discharging thrir duties regularly without facing any punitive action. This is why people encroaches into their land and build house and shops and enjoy it for years and decades . No action is taken against persons who have taken unlawful possession of their land and who carry our unlawful activities in their command area for years and decades.
No permanent processes are in place which can guarantee non happening of such unlawful possessions. It appears mischievous and ridiculous when they carry out a campaign to remove encroachment from road or from railway land for a day or two in few years. They do so for the sake of doing so or to torture their personal enemies or to please some politicians. They never bother safety of government land or that for compliance of existing laws and rules.
Sometimes we are forced to conclude that there is no government and we are living in anarchy.
Fate of public banks, public sector undertakings, government departments and judiciary has therefore not improved despite numerous frauds and losses caused to taxpayers. They too did not take lessons from accidental or mischievous acts of evil persons. This is why health of all public offices is bad , moving from bad to worse and finally causing unbearable loss after loss to public excheqer.
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A person has expressed nicely about the said accident . I am reproducing the same here-in-below.
सत्तर से ज़्यादा लोग मर चुके हैं, इतने ही गम्भीर रूप से घायल हैं। अभी तक मिली जानकारी के अनुसार ट्रैक से पचास मीटर दूर रावणदहन चल रहा था, पटाखे फटे तो लोग आवाज़ के कारण दूर होने लगे। उसी चक्कर में लोग ट्रैक पर आ गए। ट्रैक पर दूर से आती ट्रेन के ड्राइवर को क्लियर सिग्नल मिला हुआ था। हॉर्न बजाया, किसी को सुनाई नहीं दिया। ट्रेन आई, और चली गई।
कुछ लोगों के अनुसार ये आयोजन बीस साल से चल रहा था। कुछ लोगों के अनुसार आयोजक स्टेशन मास्टर को 'मैनेज' कर लेते थे और ट्रेन का परिचालन चार-पाँच घंटे तक रोक दिया जाता था। कुछ लोगों के अनुसार ट्रैक पर आ जाना एक नॉर्मल बात है जिसका ख़्याल रेलवे को रखना चाहिए।
इस तरह की सारी सूचनाओं को पढ़ने के बाद मुझे लगता है कि रेलवे का इसमें कोई दोष नहीं है। वहाँ के प्रशासन से सीधे शब्दों में किसी भी तरह की जाँच से मना कर दिया है कि भीड़ का ट्रैक पर आना 'ट्रेसपासिंग' है, और इस पर आगे कोई जाँच नहीं होगी। ये बिलकुल सही बात है कि रेलवे की प्रॉपर्टी पर बिना इजाज़त आप आ रहे हैं, तो किसी भी दुर्घटना के लिए आप ही ज़िम्मेदार होंगे।
कई विडियो में यह भी दिख रहा है कि लोग रावणदहन के पटाखों से बचने के लिए नहीं, दूर से उसका विडियो बनाने, और सेल्फी लेने में व्यस्त थे। ये सारा काम ट्रैक पर से हो रहा था। तस्वीरों में दिख रहा है कि लोग रावण के जलने से पहले से ही ट्रैक पर थे, और फोटो आदि ले रहे थे। इसलिए यह तर्क भी नाकाम ही है कि आग लगी तो लोग बचने के लिए इधर-उधर फैल गए। सामान्य बुद्धि का व्यक्ति भी यह जानता है कि जब पुतले में आग लगाई जाती है तो लोग पहले से ही एक निश्चित दूरी बनाकर खड़े होते हैं। लेकिन इस मामले में भी रेलवे ट्रैक को पार्क समझकर लोग कहीं भी खड़े थे।
दुर्घटना हो गई, उसके बाद क्या हुआ? उसके बाद वही हुआ जो सिर्फ भारत में होता है। बाकी जगहों पर पुलिस और बाकी एजेंसियाँ जाँच के लिए आती हैं, लोगों को सबसे पहले वहाँ से बचाती हैं, इलाके को जल्द से जल्द खाली कराती हैं, और ट्रेन के आवागमन को ज़ारी कराती हैं। लेकिन भारत में हर दुर्घटना के बाद विडियो बनाने वाली जनता ट्रैक पर आ जाती है। उसके बाद आगे और पीछे की ट्रेन कैंसिल कर दी जाती है।
यानि कि, एक दुर्घटना के कारण एक दूसरी भीड़ सिर्फ अपने कौतूहल को शांत करने के लिए लाखों लोगों की असुविधा का कारण बनती है। और ये सब मान्य है क्योंकि ये भारत है। ये भारत है जहाँ सड़क पर दुर्घटना होती है तो धक्का मारने वाली कार के भागने के बाद आने वाली दूसरी और चौथी कार को लोग आग लगा देते हैं, ट्रकों का सामान लूट लेते हैं, और सड़क जाम कर देते हैं।
जबकि, आप बैठकर सोचिए कि इससे होता क्या है, तो आपको एक सही जवाब नहीं मिलेगा। किसी की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई तो उसका संबंध या समाधान सड़क जाम करने, दूसरी गाड़ियों में आग लगाने से कैसे है? कोई ट्रेन दुर्घटना हो गई है तो सबसे ज़रूरी बात ट्रैक को साफ करके, ट्रेन का परिचालन सामान्य करना है या फिर हजार लोगों का ट्रैक पर आकर परिचालन रोक देना?
आप कहेंगे कि लोगों में गुस्सा होता है, वो अपने प्रियजनों को ढूँढते हुए आ जाते हैं। अब आप यह भी बता दीजिए कि पुलिस की मदद में ये भीड़ कितना काम करती है? इस भीड़ से कितने आदमी लाशों को जल्दी हटाने में मदद करते हैं? लाशों की शिनाख्त तो तब ही हो पाएगी जब उसे सही जगह पर पहुँचाया जाएगा? या फिर एक तमाशबीन भीड़ वहाँ अपने फोन निकालकर विडियो बनाती रहे, और घंटों तक ट्रैक को इस लायक न छोड़े कि वहाँ से ट्रेन को पास कराया जा सके?
तमाम बातें हो रही हैं जिसमें आयोजकों के कॉन्ग्रेस पार्टी का नेता होने से लेकर, नवजोत कौर के आने और बीस साल से हो रहे आयोजन का हवाला देकर इस भीड़तंत्र का बचाव किया जा रहा है। कोई नहीं चाहता कि लोग मर जाएँ, हर मौत दुःखद है लेकिन इसका ये मतलब बिलकुल नहीं है कि आपकी मूर्खता का ठीकरा सरकार और प्रशासन पर फूटे क्योंकि सरकार और प्रशासन नाम की चीज़ें होती हैं।
किस तर्क के आधार पर रावण को जलते देखने का मनोरंजन रेल लाइन पर खड़े होकर करना सही लगता है? भीड़ें कब तक अपने भीड़ होने का गुनाह सरकारों पर फेंकती रहेंगी? चूँकि सौ लोग, बीस साल से कोई गलत कार्य कर रहे थे, तो वो गलत कार्य सही नहीं हो जाता। ये होना ही था, और इस साल हो गया।
अब आप इसमें लोकल कॉन्ग्रेस सरकार बनाम भाजपा की रेलवे का एंगल ले आइए, लेकिन उससे सिवाय आपके कुतर्कों की मूर्खता के कुछ सामने नहीं आएगा। जब कोई ओवरस्पीडिंग के कारण मरता है, शराब पीकर गाड़ी चलाते हुए दुर्घटना का शिकार होता है, रेलवे के बंद फाटक के नीचे से निकलते हुए कटता है, बीच सड़क पर ट्रैफिक से बचकर निकलते हुए हाथ-पैर गँवाता है, तो चाहकर भी मेरी संवेदना ऐसे लोगों के साथ नहीं हो पाती।
कुछ लोग कह रहे हैं कि आयोजक बता देते तो ट्रेन धीमे कर दी जाती, या स्टेशन मास्टर को ध्यान रहता तो वो रुकवा देता। क्यों? कुछ सौ लोग वहाँ दशहरा मना रहे हैं, इसलिए कई हजार लोग जो टिकट लेकर ट्रेन में बैठे हैं उन्हें असुविधा पहुँचाई जाए? ये जो सड़कों पर काँवरियों का हुड़दंग होता है, शबेबारात पर मोटरसायकलों की जो स्टंटबाज़ी होती है, उसके कारण हुई असुविधा भी ज़ायज है?
क्या आपने यह सोचा कि इतने लोगों के ट्रैक पर आने से ट्रेन पटरी से उतर जाती तो क्या होता? क्या आपने यह सोचा कि ड्राइवर के इमरजेंसी ब्रेक लगाने से कहीं ट्रेन अनस्टेबल होकर दुर्घटना का शिकार होती तो क्या होता? क्या आपने यह सोचा कि ट्रेन में बैठे लोगों को कुछ हो जाता तो उसकी ज़िम्मेदारी किसकी होती? आपने नहीं सोचा क्योंकि भीड़ जो भी करती है, वो उसका लोकतांत्रिक अधिकार जैसा लगता है। आज के माहौल में भीड़ें अधिकांशतः गलत जगह पर, गलत समय में, गलत बातों के साथ खड़ी दिखती है।
मतलब, हम यह मानने को तैयार हैं कि भीड़ का ही चलेगा इस देश में, भले ही उससे बड़ी संख्या में आ-जा रहे लोगों को असुविधा होती रहे? ये ब्लेम दूसरे के माथे पर फेंकने से बेहतर है कि हम अपनी आदतों को सुधारें। आप चाहते हैं कि देश और समाज चकाचक हो जाए, सबकुछ व्यवस्थित और सुचारु रूप से चले, लेकिन मन के कोने में आपको मूर्ति-विसर्जन का सड़क जाम अच्छा लगता है क्योंकि आप उसमें अबीर फेंककर नाच रहे होते हैं।
भीड़ का एन्ज्वॉयमेंट तभी तक अच्छा लगता है जब तक हम उस भीड़ का हिस्सा होते हैं। भीड़ का हिस्सा सिर्फ शारीरिक रूप से उस भीड़ में होना ही नहीं है, उसका हिस्सा आप तब भी हैं जब आपको लगता है कि अमृतसर में जो हुआ उसमें भीड़ की गलती नहीं थी। आप उस भीड़ का हिस्सा तब भी हैं जब आप ये लिखते हैं कि 'भीड़ की गलती तो है लेकिन...'। लेकिन क्या?
क्या सौ-हज़ार लोग इकट्ठा होकर कुछ भी कर लेंगे और प्रशासन लाचारी से देखता रहे क्योंकि ये भीड़ फ़लाँ नेता की है, फ़लाँ धर्म वालों की है, फ़लाँ जाति वालों की है?
हम लोग उस समाज से हैं जहाँ हम उन शब्दों पर ही सबसे ज़्यादा पेशाब करते हैं जहाँ लिखा होता है कि 'यहाँ पेशाब करना मना है।' हम उस समाज से हैं जहाँ रेड लाइट जम्प करना एक अचीवमेंट माना जाता है। हम उन दोस्तों के बीच बैठते हैं जो हमें यह बताते हैं कि कैसे उन्होंने फलाना कानून तोड़ा और बच निकले।
इसलिए, संवेदना सही जगह और योग्य लोगों/घटनाओं के लिए बचाकर रखिए। ये मौतें संवेदनशील हैं, लेकिन संदर्भ जानकर मेरी संवेदना इनके साथ कभी नहीं हो पाएगी।
*#AmritsarTrainAccident*
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