Saturday, September 21, 2013

Politicians Use Mantra OF Common Man

Collected From Facebook (Final War Against Corruption)

पिछले कुछ दिनों से इस देश की अर्थ व्यवस्था और रूपए की घटती कीमत को लेकर काफी चिंतन, मनन और विमर्श किया जा रहा है.....

मीडिया पर बड़े बड़े अर्थ-शास्त्री अपने ज्ञान से रूपए की संजीदा हालत पर अपनी राय रख रहे हैं....सरकार का समर्थन करने वाले और उसी सरकार की अनुकम्पा से बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों और आर्थिक संगठनों पर विराजमान ये तथाकथित आर्थिक सलाहकार मोटी-मोटी रकम लेकर दूर देहात में भूख से मर रहे कालू, बुधवा , लाखन , रामवती और सुनहरी देवी को ये समझा देना चाहते हैं कि रोटी ना दे पाने में सक्षम और बेइंतेहा महंगाई का ठीकरा सरकार पर फोड़ना ठीक नहीं है.....

ये अर्थ-शास्त्री जी.डी. पी. , मुद्रास्फीति, आयत-निर्यात, रेपो दर जैसे भारी भरकम शब्दों का हवाला देकर गरीब की रोटी के गणित का जवाब अर्थ शास्त्र के जुमलों से देकर इस सरकार को पास कराने की नाकाम कोशिश करते दिखाए देते हैं....

सरकार ने रूपए की हालत उस अभागी माँ की तरह कर दी है जिसके पास अपने बच्चे को खिलाने के लिए कुछ भी नहीं है और जो उसे रोता देख अपनी छाती से दूध पिलाने को लगा तो लेती है पर विडम्बना देखिये कि उस जर्जर जिस्म से दूध की एक बूँद भी नहीं निकलती है.....लाचार और बेबस गरीब माँ “भारत निर्माण” के विज्ञापन की गोरी-चिट्टी मेम-साहब को देखकर समझना चाहती है कि क्या वो इसी मुल्क में रहती है और इसी मुल्क की बात कर रही है ?

आज़ादी से 66 साल का वंशवाद और चाटुकारिता की खाद से पनपता हुआ राजतंत्र आज उस ठूंठे पेड़ की तरह हो गया है जो ना फल दे सकता है, ना छाँव और ना ही लकड़ी.....वो सिर्फ एक ही बात पर अपना अस्तित्व बनाये हुए कि उसके पुरखों ने इस गाँव की बहुत सेवा की थी तो अब उसे काटा नहीं जा सकता और उसकी पूजा अनवरत होनी ही चाहिए....

साहब, ना तो हमें मुद्रास्फीति समझ में आती है और ना ही रेपो रेट की परिभाषा.....हमें तो समझ में आता है दो जून की रोटी, सर पर छत, पीने को साफ पानी, बिजली, बच्चों के स्कूल में मास्साब, सरकारी अस्पताल में डाक्टर और दवाई और ठीक-ठाक सड़क....

हमें ये समझ आता है कि हमारा बच्चा स्कूल के मिड-डे-मिल खाना खाने के बाद घर जिन्दा लौट आये..हमें ये समझ में आता है कि हमारे हिस्से का अनाज और मिट्टी का तेल सरकारी दलाल और डेपो वाला ना हजम करके हमें हमारा हिस्सा दे दे....

अगर किसी डाक्टर के पास मरीज ठीक नहीं होता तो क्या करते हैं हम ? किसी दुसरे डाक्टर के पास जाते हैं ना? बदल देते हैं अस्पताल और डाक्टर......तो फिर जब इस रूपए की हालत इतनी खराब है तो तथाकथित अर्थ-ज्ञान के जो मौन डाक्टर साहब इस देश को चला रहे हैं उन्हें क्यों नही बदल दिया जाए ?

अब अगर तुमसे नहीं होता तो क्यों जनता को हवाई किले दिखा रहे हो भाई ?
सच तो ये है कि इन नकारा लोगों के बस की बात ही नहीं रही है देश चलाना.....अब इन्हें सत्ता के शीर्ष से हटाना ही होगा और आम आदमी के सपनों को साकार करने वाले लोगों को मौका देना है....अब भूख के गणित के सवाल का जवाब जन-सेवा, लोकनीति और जनहित से देने का समय आ गया है...

बुधिया और रामवती ने डॉ मनमोहन को एक संदेशा पहुंचवाया है- अब और भूख बर्दाश्त नहीं होती साहब....अब भूख बर्दाश्त नहीं होती !!

देश आपका, रूपया आपका, वोट आपका तो फैसला भी आपका !!

जय हिन्द !! वन्दे मातरम !!

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