Wednesday, June 12, 2019

Magic od Prashant Kishor

वक्त तेजी से बदल रहा है, जो सही है वही टिकेगा!
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प्रशांत किशोर को लेकर मैं अक्सर विचलित होता हूं. 2014 के चुनाव में मोदी जी की स्ट्रेटेजी टीम में प्रशांत किशोर थे. 2014 में मोदीजी हिट हुए तो प्रशांत क्लिक हो गये. कांग्रेस को लगा कि प्रशांत नामक चिप डालने से पप्पू का ब्रेन चल पड़ेगा, लेकिन कुछ हुआ नहीं. आजकल वे बिहार में नितीश जी का काम देख रहे थे कि अचानक पक्षिम बंगाल में जय श्रीराम ने ममता का नीद हराम कर दिया है. अब प्रशांत  राजनीतिक पागलपन का भी इलाज करने लगे हैं, ऐसा पता चलने पर, बंगाल से उनकी मांग आई और पता चला कि अब वे ममता के साथ डील करेंगे.

 प्रशांत की असलियत लोगों को मालूम नहीं है. असलियत यह है कि 2014 के चुनाव के बाद मोदीजी ने जो चिप प्रशांत में डाली थी, चुनाव बाद उन्होंने उसे निकाल लिया था. लोगों को भ्रम है कि प्रशांत चुनाव के मार्केटिंग गुरू हैं. कहते हैं, काठ की हांडी़ एक बार ही चढ़ती है, दोबारा नहीं.

मोदीजी के बाद, कांग्रेस दो लौंडों की जोड़ी ऐसे पेश किया, जैसा किसी जमाने में कांग्रेस ने अपना चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी पेश की थी. दो लौंडों की जोड़ी जनता की समझ में नहीं आई और फ्लाप हो गयी. प्रशांत को नितीश ने लपका, पदाधिकारी भी बनाया. कोई फर्क हुआ, ऐसा लगता नहीं. भाजपा से गठबंधन और मोदी वेब का असर रहा की बिहार में भाजपा और नीतीश को बड़ी कामयाबी मिली.

काफी मिलावट का दौर है. शत्रुघन सिन्हा को कांग्रेस की खुजली तो उनकी मैडम को समाजवादी की. बुआ-बबुआ: साईकल पर हाथी सवार, साइकल चकनाचूर, हाथी खुश. महागठबंधन के मसीहा चंद्रबाबू सीन से गायब.मार्क्सवादियों का सफाया. जनता ने धूर्तों की अच्छी पहचान की, आरजेडी का कोई खाता नहीं खुला.ममता मोदी को तमाचा मारने से रही ं, पाव से जमीन खिसक गई. 6 महीने पहले छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी, लोक सभा चुनाव में कांग्रेस काफूर हो गई.

अब बंगाल में प्रशांत बचवा आ गये हैं. बंगाल में मर्ज राजनीतिक नहीं, मानसिक है. फोबिया की शिकार ममता को अपना अंत सामने दिख रहा है. अब खतरा और बढ़ गया है. राजीव कुमार, वही जिन्हें बचाने ममता उनकेमघर पहुं गईं थी, सीबीआई अफसरों को गिरफ्तार करवा लिया था, अब सीबीआई की गिरफ्त में हैं. ममता का हबहे बड़ा राजदार हलाखों के पीछे तो जायेगा, लेकिन ममता को भी लेकर जायेगा, यह ममता को मालूम है. हिंसा से राजनीतिक सवाल हल नहीं होते. ज्योति बसु से ममता को कुछ तो सीखना था.

 राजनीति कोई बंद कमरे का विषय नहीं होती. भारत जैसे विशाल देश में 6 दशकों का विशाल कालखंड राजनीति ठगरी का धंधा था, जहां जाति, धर्म, संप्रदाय, समाजवाद, सेकुलरिज्म, लिबरल, आश्वासनों, नारों, लालच के नाम पर सत्ता अधिष्ठान का श्रृजन होता रहा और बेखौफ लूट हुई. वोट बैंक बने और अब वोट बेच कर कुछ राजनीतिक परिवार अपना घर परिवार चला रहे हैं. देश का सबसे बड़ा और पुराना राजनीतिक राजवंश तो दीवालिया हो गया है और सनक में ऊल-जलूल बकता रहता है. मसलन प्रधानमंत्री चोर हैं, जबकि मां, बेटे बेल पर हैं, जीजा रोज कोर्ट से मोहलत मांग रहे हैं, जीजी जीजा को यहां-वहां ले जाने- ले आने के काम में लगीं हैं.

मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बने तो कितने लोगों ने आत्महत्या, देश छोड़ने आदि का एलान किया था, पर अभी तक किसी एक ने भी अपना वादा पूरा नहीं किया.

लुटियंस और खान मार्केट के दिग्गजों की घिघ्घी बध गई है. ये लोग सत्ता के ट्रेंड सेटर थे. इन्हें गुरूर था कि वे कुछ भी कर सकते हैं. अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है, जब भारत का प्रधानमंत्री इन दलालों को शराब पिलाता हो और सरकारी खर्चे से विदेश यात्राओं पर ले जाता हो. पांच वर्षों मे ये तो लुट गये, बरबाद हो गये, हराम का खाना-पीना बंद हो गया. पिछले चुनाव में इन्हें मोदी के खिलाफ सबसे ज्यादा दंड-बैठक करते देखा गया. इनके सामने खुद के पुनर्वास का सवाल था, थो कांग्रेस की वापसी में सन्निहित था. सारी ताकत लगाया, पर दाल नहीं गली. मोदीजी तो दूर दर्शन पर क्या गये, इन दूकानदारों को दूर दर्शन से न्यूज और विजुअल खरीदने पड़ने लगे.

 भारत का मीडिया दलाल बन गया. उसका अपना हित और कांग्रेस का हित देश हित से बड़ा हो गया. दुनिया में ऐसा शायद ही कोई देश हो जहां की मीडिया देश-बोध और सामाजिक सरोकारों को दरकिनार करते अपना मतलब साधती हो. भारत एक मिशाल हैं, जहां की मीडिया देश द्रोह से भी परहेज नहीं करती.

बात जब देश, राजनीति, मीडिया की हो तो अमित साह को कैसे भुलाया जा सकता है! उन्हें तरह-तरह के नामों से पुकारा जाता है. कोई उन्हे चाणक्य तो कोई राजनीति शास्त्र के विद्यालय का प्रिंसिपल कहता है. मैं उन्हें विशुद्ध रूप से राजनीति शास्त्र के एक दार्शनिक के रूप में देखता हूं जो अपने दर्शन को अपने प्रयोगों और परिणामों से परिभाषित करता है.

राजनीति कोई बच्चों का खेल नहीं, बल्कि एक समर्पण का सतत् खेल है. मौके की राजनीति करने वालों का दौर छोटा होता है. नजर डालिए बहुत से लोग खर-पतवार कि तरह आज हवा के साथ उड़ रहे है. ऐसे लोगों का काम खुद के हित के इर्द-गिर्द होता है. यूपी में दो लोग हैं, जो अब टिकट बेंच कर अपने को राजनीति मे बनाये हुए है.

कांग्रेस बूढ़ी हो गई है. इसकी हालत आया राम-गया राम की है. जो मुस्कराया उसी के पीछे हो लिए. लोगों की समझ में राजनीति तिकड़म का खेल बन गई थी.

वक्त बदला है. राजनीति में वही टिकेगा, जिसके एजेंडे मे राष्ट्र और लोग होंगे. मोदी निष्काम भाव से देश और जन को समर्पित हैं. उनका मुकाबला कोई मोदी ही कर सकता है और देखें तो पायेंगे कि मोदी स्वयं अपना मोदी गढ़ रहें हैं. मोदी केवल सत्ता ही नहीं देख रहे हैं, बल्कि उन विषयों पर भी काम कर रहे हैं जो उन्हे लम्बे समय तक अपरिहार्य बनाये रखे. ऐसा काम कोई मनीषी ही करता है. नये प्रयोग, नये विषय, नये लोग पार्टी हो या सरकार, दोनों, स्तर पर देखे जा सकते हैं. सबको साथ लेकर चलना ही सबके विकास की कुंजी है और सबका विकास ही सबके विश्वास की कुंजी है. मोदी का आत्मविश्वास इतना मजबूत इसलिए है कि वे ईमानदारी से सोचते हैं, काम करते हैं, निर्णय लेते हैं. उनकी अपनी कोई कमजोरी नहीं हैं, यह उनकी मजबूती है. नौकरशाही को अपनी दौड़ में सामिल करना, उनका कौशल है.

विचारणीय विषय है, देश की अन्य राजनीतिक दूकानों को अपने उत्पाद पर गौर करना चाहिए, उनके उत्पाद की कमियों ने, उन्हें बाजार से बाहर किया है. कोई विरोधी अच्छे उत्पाद पर उंगलिया उठा कर, अपने घटिहा उत्पाद का बाजार नहीं बना सकता. मोदी देश और जनता की जरुरत बन चुके हैं. सामाजिक गुणा-भाग कर राजनीति की मोहरे बैठाने का समय जा चुका है. खेल खेल है, वही जीतेगा जो अच्छा खेलेगा.
- जे.एन.शुक्ला, प्रयागराज, 11.6.19

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