Wednesday, August 21, 2019

Congress Party Muslim Policy and Mr Chidambaram Financial Loot

Messages received on whatapp before or after arrest of Mr P Chidambaram are many but few of them are presented below and kept in record.


आज अगर अमित शाह की जगह कोई दूसरा गृहमंत्री होता तो चिदंबरम आज भी अपने घर पर मिलते। वे डरे हुए न होते। लापता न होते। वाकई बहुत ही दिलचस्प राजनीतिक लड़ाई है। संयोग देखिए। पी. चिदंबरम आज भागे हुए हैं और आज देश का गृह मंत्रालय अमित शाह के हाथ में है। कभी तस्वीर एकदम उल्टी थी। तब चिदंबरम देश के गृहमंत्री थे और अमित शाह साबरमती की जेल में थे। तब चिदंबरम नॉर्थ ब्लॉक स्थित गृहमंत्री कार्यालय में बैठकर "भगवा आतंकवाद" की फाइल तैयार करवा रहे थे और अमित शाह अपने बचाव की फ़ाइल में रोज़ ही नए पन्ने जोड़ रहे थे। अमित शाह इस मामले में हिसाब किताब पूरा रखने के आदी हैं। मुरव्वत करना उनकी आदत में नही है। ये अमित शाह के गृहमंत्री होने का खौफ ही है कि चिदंबरम रातोंरात लापता हैं।

यही अमित शाह के काम करने की शैली है। किसी ने कभी उम्मीद नही की थी कि एक रोज़ कश्मीर में यूँ बाजी पलट दी जाएगी। उम्मीद तो ये भी नही थी कि कभी देश के सबसे ताकतवर मंत्री रहे चिदंबरम का ये हश्र भी होगा! पर यही अमित शाह हैं। उनकी किताब में "रियायत" नाम का शब्द नही हैं। सही-गलत क्या है, ये फैसला वक़्त और कोर्ट पर छोड़ते हैं। आज सिर्फ राजनीति की नई इबारत को पढ़ने की कोशिश हैं। चिदम्बरम मार्च 2018 से लगातार अपनी गिरफ्तारी पर रोक का आदेश हासिल कर रहे थे। मगर आज किस्मत जवाब दे गई। उनके खिलाफ ठोस सबूत हैं। एक भी आरोप हवाई नहीं हैं। विदेशों में परिवार के नाम हजारों करोड़ों की संपत्ति के कागज हैं। आईएनएक्स मीडिया और फिर एयरसेल-मैक्सिस के मामले में एफआईपीबी नियमों को तोड़ मरोड़ कर सैकड़ों करोड़ का फायदा पहुंचाने और उसका एक बड़ा परसेंटेज अपने बेटे की कंपनी तक पहुंचाने के पक्के सबूत हैं। ये सब तब हो रहा था जब चिदंबरम देश के वित्तमंत्री थे।

यकीन मानिए कि इस देश की राजनीति वक़्त के एक निर्णायक दौर में पहुंच चुकी है। परिवार, खानदान, प्रभावशाली लोग, बड़े नेताओं से मीठे रिश्ते जैसे सियासत के खानदानी शब्द राजनीति की इस नई डिक्शनरी से साफ हो चुके हैं। अब ये आर-पार की लड़ाई है। आज चिदंबरम की बारी आई है। नोट कर लीजिए, कल दस जनपथ का बुलावा आएगा। इन पांच सालों में बहुत कुछ ऐसा होगा जो इतिहास में कभी न हुआ।

नोट कर लीजिए कि भारत की राजनीति के ये 5 साल अगले सौ सालों तक राजनीति के पंडितों के लिए शोध का विषय रहेंगे।

____________________________-------_____----____
मैं सोच रहा हूँ.....
पाकिस्तान में मुसलमानों को कौन मार रहा है ?
अफगानिस्तान में मुसलमानों को कौन मार रहा है ?
सीरिया में मुसलमानों की हत्या कौन कर रहा है ?
यमन में मुसलमानों को कौन मार रहा है ?
इराक में मुसलमानों को कौन मार रहा है ?
लीबिया में मुसलमानों की हत्या कौन कर रहा है ?
कौन है जो मिस्र में मुसलमानों को मार रहा है ?
जो सोमालिया में मुसलमानों को मार रहा है ?
बलूचिस्तान में भी मुसलमानों को मार रहा है ?
अब मैं सोच रहा हूँ जब ये सभी देश इस्लामिक हैं... तब शान्ति कहाँ है ?
मैं इस्लाम पर सवाल नहीं कर रहा हूँ, क्योंकि सभी लोग जानते हैं की इस्लाम एक
शांतिपूर्ण धर्म है... लेकिन शांति रहस्यमय रूप से से गायब है....!!  अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, लेबनान, यमन और मिस्र को क्या बजरंग-दल या हिन्दू-महासभा ने बर्बाद किया है ? या वहां दंगा करने के लिए आर .एस. एस. के लोग गए थे?

अजीब विडम्बना है ,
कुछ ग़द्दारों के लियें यहाँ
इशरत "बेटी" है,
कन्हैया "बेटा" है,
दाऊद "भाई" है,
अफ़ज़ल "गुरू" है,
लेकिन,
भारत "माता" नहीं !!!
आखिर...ऐसा क्यों है........???

बौद्ध +हिन्दू =रहने में समस्या नहीं
हिन्दू + ईसाई = रहने में समस्या नहीं ,
हिन्दू + यहूदी = रहने में समस्या नहीं,
ईसाई +नास्तिक =रहने में समस्या नहीं,
नास्तिक +बौद्ध = कोई समस्या नहीं,
बौद्ध + सिख = कोई समस्या नहीं,
सिख + हिन्दू = कोई समस्या नहीं,
कन्फ्यूशियस + हिन्दू =कोई समस्या नहीं,

अब थोड़ा और ध्यान दीजिए...

मुस्लिम +हिन्दू = समस्या
मुस्लिम +बौद्ध =समस्या
मुस्लिम + ईसाई = समस्या
मुस्लिम +Jews =समस्या
मुस्लिम + सिख = समस्या
मुस्लिम + Baha'is = समस्या
मुस्लिम + नास्तिक = समस्या
मुस्लिम +Atheists =समस्या
मुस्लिम +मुस्लिम =बहुत बड़ी समस्या!

उदाहरण देखिए, जहां-जहां मुस्लिम बहुसंख्यक है, वहाँ वे सुखी नहीं रहते हैं और न दूसरे को रहने देते हैं!

देखिए ...

मुस्लिम सुखी नहीं गाजा में
मुस्लिम सुखी नहीं Egypt में
मुस्लिम सुखी नहीं लीबिया में
मुस्लिम सुखी नहीं मोरोक्को में
मुस्लिम सुखी नहीं ईरान में
मुस्लिम सुखी नहीं ईराक में
मुस्लिम सूखी नहीं यमन में
मुस्लिम सुखी नहीं अफगानिस्तान में
मुस्लिम सुखी नहीं पाकिस्तान में
मुस्लिम सुखी नहीं सीरिया में
मुस्लिम सुखी नहीं लेबनान में
मुस्लिम सुखी नहीं नाइजीरिया में
मुस्लिम सुखी नहीं केन्या में
मुस्लिम सुखी नहीं सूडान में

अब गौर कीजिए .........!
मुस्लिम सुखी वहां हैं, जहाँ कम संख्या में है...??

मुस्लिम सुखी है आस्ट्रेलिया में
मुस्लिम सुखी है इंग्लैंड में
मुस्लिम सुखी है बेल्जियम में
मुस्लिम सुखी है फ्रांस में
मुस्लिम सुखी है इटली में
मुस्लिम सुखी है जर्मनी में
मुस्लिम सुखी है स्वीडन में
मुस्लिम सुखी है U.S.A. में
मुस्लिम सुखी है कनाडा में
मुस्लिम सुखी है भारत में
मुस्लिम सुखी है नार्वे में
मुस्लिम सुखी है नेपाल में

मुसलमान हर उस देश में सुखी है !
जो इस्लामिक देश नही है ........
और देखिये कि वो उन्ही देशो को दोषी ठहराते है जो इस्लामिक नही हैं....!
या जहां मुस्लिमो की लीडरशिप नही है.....!

मुस्लिम हमेशा उन देशो को ब्लैम करते है जहा वे सुखी हैं.......!
और मुस्लिम उन देशो को बदलना चाहते है..... जहा वे सुखी हैं !
और बदल कर वे उन देशो की तरह कर देना चाहते हैं!
जहा वे सुखी नही हैं........!
और अंत तक वो इसके लिए लड़ाई करते हैं....! और इसको ही बोलते हैं........
* #इस्लामिक_जिहाद*

अब थोड़ा आतंकवादी संगठनो पर नजर डालिए........!
जिनके द्वारा वह दुनिया को बदलना चाहते हैं....!

1.ISIS = इस्लामी आतंकवादी संगठन ,
2.अल कायदा = आतंकवादी संगठन ,
3.तालिबान = आतंकवादी संगठन
4.हमास = आतंकवादी संगठन
5.हिज्बुल मुजाहिदीन=आतंकवादी संगठन
6.बोको हराम =आतंकवादी संगठन
7.Al-Nusra =आतंकवादी संगठन
8.अबू स्याफ = आतंकवादी संगठन
9.अल बदर = आतंकवादी संगठन
10.मुस्लिम ब्रदरहुड = आतंकवादी संगठन
11.लश्कर-ए-तैयबा = आतंकवादी संगठन 12.Palestine Liberation Front
=आतंकवादी संगठन
13.ISLAMIC TERROR ORGANIZATION
Ansaru =आतंकवादी संगठन
14.जेमाह इस्लामिया = इस्लामी आतंकवाद
संगठन
15.अब्दुल्ला आजम ब्रिगेड = आतंकवादी
संगठन

आदि और भी हैं ऐसे ही इस्लामिक जेहादी आतंकवादी संगठन!

अब इतना तो आप सभी, जरूर समझ गए होंगे कि......
"आतंकवादी" का "मजहब" क्या होता है.....???

अब अगर कोई हिन्दुओ को बदनाम करता है........
भगवा आतंकवाद के नाम पर, तो .......
उसे वहीं पकड़ कर ...................
ये काला चिठ्ठा अवश्य दिखाएं...........!

बस इन्ही जैसे लोगो के बल पर इस्लामिक जिहाद बढ़ता है.........!

आश्चर्य......घोर आश्चर्य.........?ॐ नमः शिवाय
👉🙏👈

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मोदी जी को सीएम रहते 2002 दंगो के केस में जब हर महीने दिल्ली पेशी में बुलाया जाता था और घंटो उन से बेफिजूल की पूछताछ की जाती थी, वो बिना विचलित हुए सबका सामना करते रहे!!
पूरा मीडिया, देश की सारी जांच एजेंसियां, सारे चंदे पे पलने वाले एनजीओ, लश्कर और जैश भी उनके पीछे लगाए गए,
उन्हें मौत का सौदागर जैसे उपमाओं से उनको नवाजा गया, वो तब भी विचलित हुए बिना गुजरात को डेवलप करते रहे,
और फाइनली उन्हें सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिली।

इशरत के मरने के बाद लश्कर ने उसकी मौत को शहादत बताकर उसे अपना बताते हुए उस पर फक्र किया था,
सोहराबुद्दीन के एनकाउंटर के बाद उसके मालवा स्तिथ गांव के कुंए से कई एके 47 और घर से कई हैंड ग्रेनेड बरामद हुए थे,
लेकिन उसे मुद्दा बनाकर,
गुजरात के गृह मंत्री रहते अमित शाह को गुजरात से तड़ीपार किया गया, लश्कर आतंकियो के एनकाउंटर को फर्जी बताकर उन्हें जेल भेजा गया,
वो तब भी विचलित नही हुए, सबका सामना किया,
और बेदाग बाहर आये।

इतना कुछ हो गया इन्होंने कभी विक्टिम कार्ड नही खेला,
ये दोनों नेता सच्चे हैं, इन्होंने दोषी साबित हुए जाने पर फांसी पे चढ़ने को तैयार थे लेकिन इन्होंने माफी मांगने से इनकार कर दिया,
ईमानदारी हमेशा गरजती है और बेईमानी हर वक़्त मिमियाती है,

अगर गलती न हो तो एक आम आदमी भी पूरे शासन प्रशासन से भिड़ कर उन्हें नाकों चने चबवा देता है,
आप के कागजात पूरे हैं, तो मजाल है पुलिस आपका 100 रुपये का भी चालान काट ले,
आपका कंस्ट्रक्शन नियमानुसार है और वैध है, तो मजाल है टाउन एंड कंट्री प्लानिंग आपकी एक इंच जमीन खिसका ले,

गलती किये हो, इसलिए भागे भागे फिर रहे हो मिस्टर लुंगी, कांग्रेस के सारे बड़े वकीलों को मैदान में उतार दिया है,
ये आदमी कांग्रेस का सबसे बड़ा इंटेलेक्चुअल माना जाता रहा है लेकिन आज खुद की पैरवी नही कर पा रहा,
ये आदमी प्रख्यात अर्थशास्त्री माना जाता रहा, लेकिन खुद ही अपने काले कारनामो का सबूत छोड़ गया!!

असल बात ये है कि ये कांग्रेस का सबसे बड़ा फंड मैनेजर है, इसी के दम पर पूरी कांग्रेस पार्टी है।
ये संपत्ति में आज गांधी परिवार से भी बड़ा हो चुका है,
और अगर इसकी गर्दन दबोची गयी मतलब पूरी कांग्रेस पार्टी के काले कारनामो का पर्दाफाश, और कांग्रेस की रीढ़ की हड्डी टूटेगी,
इसलिए गांधी परिवार समेत सारे कांग्रेसी इसके बचाव में उतर आये है और विक्टिम कार्ड खेला जा रहा,
चिदम्बरम को भी पता है अगर वो कानून के हाथ लगा तो यही सारे जो आज उसे बचाने उतरे हैं ये उसकी जान के दुश्मन बन जाने हैं!!

लेकिन सामने इस बार मोदी और शाह की जोड़ी है,
कोई पैंतरा कोई विक्टिम कार्ड तुम्हारे काम नही आना,
देश मे कांग्रेस की क्रेडिबिलिटी कितनी बची है ये सबको पता है,
इनके काले कारनामो की फेहरिस्त जानने हर भारतवासी आतुर है।
Long live modi ji
Long live shah ji  😄🙏

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चिदंबरम जब पूछते थे कि विजय माल्या कैसे भागा? नीरव मोदी कैसे भागा? मेहुल चौकसी कैसे भागा?, तो लगता था कि वो सरकार से सवाल पूछ रहे हैं....

तब किसे पता था कि वो सवाल नहीं... बल्कि भागने का तरीक़ा पूछ रहे हैं.😄

आज अगर अमित शाह की जगह कोई दूसरा गृहमंत्री होता तो चिदंबरम आज भी अपने घर पर मिलते। वे डरे हुए न होते। लापता न होते। वाकई बहुत ही दिलचस्प राजनीतिक लड़ाई है। संयोग देखिए पी. चिदंबरम आज भागे हुए हैं और आज देश का गृह मंत्रालय अमित शाह के हाथ में है। कभी तस्वीर एकदम उल्टी थी। तब चिदंबरम देश के गृहमंत्री थे और अमित शाह साबरमती की जेल में थे। तब चिदंबरम नॉर्थ ब्लॉक स्थित गृहमंत्री कार्यालय में बैठकर "भगवा आतंकवाद" की फाइल तैयार करवा रहे थे और अमित शाह अपने बचाव की फ़ाइल में रोज़ ही नए पन्ने जोड़ रहे थे। अमित शाह इस मामले में हिसाब किताब पूरा रखने के आदी हैं। मुरव्वत करना उनकी आदत में नही है। ये अमित शाह के गृहमंत्री होने का खौफ ही है कि चिदंबरम रातोंरात लापता हैं।

यही अमित शाह के काम करने की शैली है। किसी ने कभी उम्मीद नही की थी कि एक रोज़ कश्मीर में यूँ बाजी पलट दी जाएगी। उम्मीद तो ये भी नही थी कि कभी देश के सबसे ताकतवर मंत्री रहे चिदंबरम का ये हश्र भी होगा! पर यही अमित शाह हैं। उनकी किताब में "रियायत" नाम का शब्द नही हैं। सही-गलत क्या है, ये फैसला वक़्त और कोर्ट पर छोड़ते हैं। आज सिर्फ राजनीति की नई इबारत को पढ़ने की कोशिश हैं। चिदम्बरम मार्च 2018 से लगातार अपनी गिरफ्तारी पर रोक का आदेश हासिल कर रहे थे। मगर आज किस्मत जवाब दे गई। उनके खिलाफ ठोस सबूत हैं। एक भी आरोप हवाई नहीं हैं। विदेशों में परिवार के नाम हजारों करोड़ों की संपत्ति के कागज हैं। आईएनएक्स मीडिया और फिर एयरसेल-मैक्सिस के मामले में एफआईपीबी नियमों को तोड़ मरोड़ कर सैकड़ों करोड़ का फायदा पहुंचाने और उसका एक बड़ा परसेंटेज अपने बेटे की कंपनी तक पहुंचाने के पक्के सबूत हैं। ये सब तब हो रहा था जब चिदंबरम देश के वित्तमंत्री थे।

यकीन मानिए कि इस देश की राजनीति वक़्त के एक निर्णायक दौर में पहुंच चुकी है। परिवार, खानदान, प्रभावशाली लोग, बड़े नेताओं से मीठे रिश्ते जैसे सियासत के खानदानी शब्द राजनीति की इस नई डिक्शनरी से साफ हो चुके हैं। अब ये आर-पार की लड़ाई है। आज चिदंबरम की बारी आई है। नोट कर लीजिए, कल दस जनपथ का बुलावा आएगा। इन पांच सालों में बहुत कुछ ऐसा होगा जो इतिहास में कभी न हुआ।

भारत की राजनीति के ये 5 साल... अगले सौ सालों तक राजनीति के पंडितों के लिए शोध का विषय रहेंगे।

1 comment:

vannevarobrist said...

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