Tuesday, March 19, 2013

Reality OF MBA Graduate ------Though It is Long , You Must Read


तुम आइआइएम-ए से निकले एमबीए हो!

आइआइएम, रांची के निदेशक प्रो एमजे जेवियर ने यह लेखप्रभात खबर के पाठकों के लिए खास तौर पर लिखा है. इसे जरूर पढ़ें. यह लेख बिजनेस स्कूलों में दी जा रही डिग्रियों पर है. यह आलेख लंबा है, लेकिन इसमें कई रोचक किस्से हैं, जो आपको गुदगुदायेंगे भी और सोचने पर भी मजबूर करेंगे. -
भारत में एमबीए शिक्षा दोराहे पर है. यूनेस्को के निदेशक ने हाल ही में देश की शिक्षा व्यवस्था की खराब हालत पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि यह कामकाजी अनपढ़ (फंक्शनल इलिटिरेट्स) तैयार करती है. फंक्शनल इलिटिरेसी का मतलब है पढ़ने-लिखने की पर्याप्त दक्षता का अभाव, जिसके कारण व्यक्ति किसी काम को प्रभावी तरीके से नहीं कर पाता है. एसोचैम की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले चार सालों में कैंपस सेलेक्शन में 40 फीसदी की कमी आयी है.
अध्ययन के अनुसार, 2012 में 180 बिजनेस स्कूल बंद हो गये. जबकि इस साल 160 स्कूलों के बंद होने की आशंका है. 2008 के मुकाबले जहां बिजनेस स्कूलों से 54 प्रतिशत स्नातक कोर्स पूरे करने के बाद सीधे नौकरी पाते थे, वह अब घट कर महज 10 फीसदी रह गया है (टॉप 20 बिजनेस स्कूलों को छोड़ कर). मैं आइआइएम बेंगलुरु के संस्थापक निदेशक दिवंगत प्रो एनएस रामास्वामी का बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूं. एक बार उन्होंने कहा कि आज जितना फोकस ट्रेनिंग पर है, उसे मल्टी डाइमेंशनल इनपुट्स (विविधतापूर्ण) से बदल देनी चाहिए. मनुष्य सामाजिक प्राणी है, इसलिए उसके जो सामाजिक संबंध हैं. उन्हें समझने की जरूरत है, ताकि शांतचित्त (पीसफुल), उत्पादक (प्रोडक्टिव) और देशभक्त (पैट्रिओटिक) नागरिक बनाया जा सके.
दुर्भाग्य से आज की शिक्षा व्यवस्था न तो रोजगार दे पा रही है और न ही छात्रों को जिंदगी से लड़ने के लिए तैयार कर रही है. यहां तक कि जो नौकरी पा भी जाते हैं, वे उसमें बने रहने के लिए संघर्ष करते हैं, क्योंकि उनका ‘इक्यू’ (इमोशनल क्वेशंट) लेवल बहुत कम होता है. उन्हें यह भी नहीं मालूम कि मुश्किलों का सामना कैसे करें? चाहे बात नौकरी की हो या उनकी निजी जिंदगी की. शिक्षा का फोकस परीक्षा पास करने से ज्यादा स्किल डेवलपमेंट(कौशल विकास), ज्ञान प्राप्ति, मूल्य और नजरिया विकसित करने की ओर होना चाहिए. शिक्षा का जुड़ाव जमीनी स्तर पर होना चाहिए, जो लाभप्रद हो और सबके के लिए प्रासंगिक हो. डिग्री के लिए डिग्री, चाहे वह आइआइटी या आइआइएम से ही क्यों न प्राप्त की गयी हो, व्यक्ति या समाज के किसी काम की नहीं है.
* एमबीए धारकों का अहंकार
एक बार हार्वर्ड से एमबीए पढ़ा एक व्यक्ति अपने पैतृक गांव जा रहा था, जो तमिलनाडु के सुदूर इलाके में था. उसे बन्नानी नदी को पारिसाल (एक प्रकार की गोल नाव) से पार करना था. एमबीए धारक ने नाविक से पूछा, क्या तुम्हें सोशियोलॉजी, साइकोलॉजी, मार्केटोलॉजी या क्रिमिनोलॉजी के बारे में पता है? नाविक ने कहा, नहीं मुझे इनमें से किसी के बारे में नहीं पता. तब एमबीए धारक ने कहा कि धरती पर रह कर फिर क्या जानते हो? तुम जैसे लोग निरक्षर ही मरोगे. नाविक चुप रहा. कुछ देर बाद नाव डगमगाने लगी. नाविक ने उस एमबीए धारक से पूछा, क्या तुम स्विमोलॉजी या क्रोकोडायोलॉजी से बचने के लिए एस्केपोलॉजी के बारे में जानते हो? एमबीए धारक ने कहा नहीं. नाविक ने कहा, अच्छा चलो, आज तुम ड्राउनोलॉजी और क्रोकोडायोलॉजी से मिल लो. फिर मेरी हेल्पोलॉजी नहीं होगी और तुम अपने बैडमाउथोलॉजी के कारण डायोलॉजी को प्राप्त करोगे.
* इस कहानी से हमें दो सबक मिलते हैं
सामान्यत: एमबीए धारक अपने बारे में बहुत सोचते हैं. यदि आप बिना गहराई से सोच-विचार किये चीजों के बारे में बात करेंगे, तो आप कॉरपोरेट ओसनियोलॉजी में डूब जायेंगे.
जो लोग विषयों पर अच्छी पकड़ रखते हैं, पर जीवन जीने का गुण नहीं सीखते, उन्हें भी सफलता नहीं मिलती. जीवन में सफलता पाने के लिए आपको दक्ष होने, मूल्यों से लैस होने और सही नजरिये को विकसित करने की जरूरत है.
* निष्ठा का अभाव
अमेरिका और कनाडा के 5300 छात्रों पर एकेडमी ऑफ मैनेजमेंट लर्निंग एंड एजुकेशन द्वारा किये गये अध्ययन में बताया गया कि 56 प्रतिशत एमबीए धारक परीक्षाओं में नकल करते हैं. एमबीए छात्र जीमैट में चिट करते हैं, ताकि उन्हें टॉप बिजनेस स्कूलों में दाखिला मिल सके. बिजनेस स्कूलों में पढ़ते हुए एमबीए छात्र चिट करने की बात स्वीकारते हैं. एक बार जब वे इन बिजनेस स्कूलों से बाहर जाते हैं, तो निश्चित रूप से वे अनैतिक होकर काम करते हैं.
मैं आपको एक और कहानी सुनाना चाहूंगा, जो सफलता के लिए जरूरी है. तीन बुजुर्ग भगवान के पास गये. पहले एक अमेरिकी ने भगवान से पूछा कि उसका देश आर्थिक मंदी से कब बाहर आयेगा? भगवान ने कहा, सौ साल बाद. अमेरिकी यह सुन कर जोर-जोर से रोने लगा कि मैं उस दिन को देखने के लिए जीवित नहीं रहूंगा. दूसरे रूसी आदमी ने भगवान से पूछा, हमारा देश कब समृद्ध हो सकेगा? जवाब मिला-पचास साल बाद. उसने बिलख कर रोते हुए कहा- मैं उस दिन को देखने के लिए जीवित नहीं रहूंगा. अंत में एक भारतीय ने पूछा-मेरा देश भ्रष्टाचार मुक्त कब बन सकेगा? इस बार भगवान रोने लगे. उन्होंने कहा, यह देखने के लिए वह जीवित नहीं रहेंगे.
इन दिनों हालत यह है कि लोग पैसे देकर नौकरी पाते हैं, फिर नौकरी में बने रहने के लिए पैसे देते हैं. अपना काम कराने के लिए घूस देते हैं, अपना जीवन स्तर बेहतर करने के लिए घूस लेते हैं. ऐसा लगता है जैसे बिना घूस दिये बिजनेस चलाया ही नहीं जा सकता. लेकिन याद रखिए कि एक बार जब आप इस गंदे बिजनेस में उतर जायेंगे, तब आपकी सुख-समृद्धि छिन जायेगी. घूस लेनेवाले कुछ लोग भगवान को भी इसमें साझीदार बना लेते हैं और उसका कुछ भाग मंदिरों और चर्चो को दान के रूप में देते हैं. यह कुछ समय के लिए चल सकता है, लेकिन जब आप आगे बढ़ेंगे, तो सिस्टम के शिकार बनेंगे. किसी न किसी रूप में आपका अतीत आपका पीछा करते रहेगा. सरल शब्दों में कहा जाये, तो इस तरह के अनैतिक कर्मों से दूर रहें. इसलिए सफलता का दूसरा मंत्र है ईमानदारी.
* हर तरफ शार्टकट
आजकल दूसरी बड़ी प्रवृत्ति शार्टकर्ट की है. आप कोचिंग संस्थानों में जाते हैं, ताकि प्रवेश परीक्षाएं पास कर सकें. टय़ूशन भी तो इसीलिए लेते हैं ताकि परीक्षाएं पास कर सकें. यदि मैं ऐसी किताब लिखूं, जिसमें बिना पढ़े पास करने के फॉर्मूले (हाउ टू पास विदाउट स्टडिंग) बताये गये हों, तो मैं आसानी से पुस्तक की लाखों कॉपियां बेच सकता हूं. मुझे विश्वास है कि आपमें से कइयों ने ‘इजी वे टू गेट रिच’(धनी बनने के आसान रास्ते) जैसी पुस्तकें पढ़ी होंगी. कई लोग बिना कुछ सीखे ही नौकरी पाना चाहते हैं. फिर बिना काम किये प्रोमोशन भी चाहते हैं. इस तरह की स्थिति के लिए हमें जिम्मेदारी लेनी होगी, क्योंकि हमलोग ही यह सिखाते हैं कि कम से कम प्रयासों में कैसे अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जाये.
दुर्भाग्य से छात्रों का माइंडसेट यह है कि अच्छे कॉलेजों में दाखिले से स्वत: ही सफलता मिल जायेगी. एक और कहानी सुनाता हूं. एक बार एक गांव में बाढ़ आयी. एक किसान ने कहा कि मैं यहीं रहूंगा. ईश्वर मेरी रक्षा करेगा. बाढ़ का पानी बढ़ता गया. एक नाव उसके पास आयी. नाविक ने कहा, नाव पर आ जाओ. उसने कहा-नहीं, ईश्वर मेरी रक्षा करेगा. तब तक बाढ़ का पानी बहुत ऊपर आ चुका था. किसान अपने घर की छत पर चला गया. शीघ्र ही हेलीकॉप्टर आया. वहां से भी उसे मदद की पेशकश हुई. किसान ने फिर कहा, नहीं-ईश्वर मुझे बचायेगा. इस तरह वह किसान डूब कर मर गया. जब वह स्वर्ग पहुंचा, तो उसने ईश्वर से पूछा, आपने मुझे क्यों नहीं बचाया? ईश्वर ने जवाब दिया, मैंने तुम्हारे लिए एक नाव और हेलीकॉप्टर भेजा तो था. अब इससे ज्यादा क्या चाहते हो?
यदि आप सोचते हैं कि बिना कुछ सीखे-जाने ही जेएनयू आपके जीवन की नैया हमेशा खेती रहेगी, तो मेरा विश्वास है कि आप जरूर डूबेंगे. महज दाखिला लेने और पैसा देने से आप स्वत: ही चीजों को नहीं पा सकते. आपके अच्छे कॉलेजों में दाखिला के लिए आपके अभिभावक मोटी रकम देते हैं. हमें आपके दिमाग में ज्ञान की बातें डालनी होती हैं, जबकि आप खुद कोई प्रयास नहीं करते. चूंकि आप पैसे देते हैं इसलिए चाहते हैं कि बिना ज्ञान प्राप्त किये ही नौकरी मिल जाये. कृप्‍या यह याद रखें कि बिना तकलीफ उठाये कुछ नहीं मिलता. इसलिए सफलता का तीसरा मंत्र है कठिन परिश्रम.
* ईश्वर की भूमिका
अगली कहानी है- मक्खी, मछली, भालू, शिकारी, चूहा और बिल्ली की. एक बार भीषण गर्मियों के दिनों में मक्खी झरने के किनारे एक पत्ती पर आराम कर रही थी. गरमी से व्याकुल मक्खी सोच रही थी कि यदि वह तीन इंच नीचे जाती है, तो वह पानी की नमी से तरोताजा हो जायेगी. पानी में मछली यह सोच रही थी कि यदि यह मक्खी तीन इंच नीचे आती है, तो मैं इसे खा सकती हूं. किनारे पर खड़ा भालू यह सोच रहा था कि यदि यह मक्खी तीन इंच नीचे आती है, तो मछली इसे पकड़ने के लिए उछलेगी और मैं उसे पकड़ लूंगा. किनारे से थोड़ी दूर एक शिकारी सैंडविच खाने की तैयारी कर रहा था. उसने भी सोचा, यदि यह मक्खी तीन इंच नीचे आती है और मछली इसे पकड़ लेती है, तो भालू निश्चित रूप से मछली पकड़ने के लिए आगे बढ़ेगा. तब मैं भालू को अपना निशाना बना सकता हूं. इस प्रकार मेरा बढ़िया लंच हो जायेगा.
एक चूहा शिकारी के पैरों के पास मंडरा रहा था. वह सोच रहा था कि काश मक्खी तीन इंच नीचे आती..मछली उछलती..भालू मछली पकड़ता..शिकारी भालू को शूट करता और वह सैंडविच को नीचे रख देता, तो बढ़िया भोजन हो जाता. झाड़ियों के पीछे छिपी बिल्ली यह सब देख रही थी. उसने सोचा-मक्खी तीन इंच नीचे आती..मछली उछलती..भालू मछली पकड़ता..शिकारी भालू को शूट करता, चूहा सैंडविच खाता और मैं चूहे को अपना शिकार बनाती. अंत में मक्खी नीचे आती है और मछली उसे निगल लेती है. फिर भालू मछली पकड़ लेता है. शिकारी भालू को निशाना बनाता है. चूहा सैंडविच खाता है. बिल्ली चूहे को लपकने के लिए कूदती है, पर चूहा उससे बच कर भाग जाता है. बिल्ली पानी में गिर कर डूब जाती है.
जीवन में सब कुछ हमेशा आपके सोचे अनुसार नहीं होता. जैसे..अपनों को खोना, बीमार होना, कोई दुर्घटना होना आदि. मान लीजिए कि आप कार चलाते हैं. तभी अचानक एक ड्राइवर जिसका अपनी गाड़ी पर नियंत्रण नहीं है, आपको धक्का मार देता है. या फिर अचानक तूफान आ जाये और आपकी गाड़ी पर पेड़ टूट कर गिर जाये. आपकी गाड़ी चूर-चूर हो जाती है. संभवत: इन चीजों के ऊपर आपका महज 10 प्रतिशत ही नियंत्रण होता है. हमारे साथ घटित होनेवाली अधिकांश चीजें अचानक होती हैं. हम अपनी सफलता का श्रेय नहीं ले सकते न ही आपकी असफलता पर हताश हो सकते हैं. इन चीजों के बारे में नहीं सोचें. बस वही करिए, जो आप करना चाहते हैं.
यदि आपकी योजनाएं नहीं काम करती हैं, तो याद रखिए, ऊपर वाले के पास आपके लिये कोई और ही योजना है. किसी संकट का सामना करना आसान नहीं होता. बाद में आप यह महसूस करेंगे कि सब कुछ अच्छे के लिए हुआ. एक राजा था, जो ईश्वर में यकीन नहीं करता था. उसका एक गुलाम था, जो हमेशा कहा करता था कि महाराज, हतोत्साहित न हों, क्योंकि ईश्वर जो कुछ करता है, भले के लिए ही करता है. एक बार दोनों शिकार पर गये. रास्ते में जंगली जानवर ने राजा पर हमला बोल दिया. राजा के गुलाम ने किसी तरह उस जानवर को मार गिराया. पर, वह राजा की एक अंगुली नहीं बचा सका.
क्रोधित राजा ने कृतज्ञता व्यक्त करने के बजाय गुलाम से कहा, क्या खाक भगवान अच्छे हैं? यदि वह कल्याणकारी होते, तो जंगली जानवर मुझ पर हमला नहीं करता और मैं अंगुली नहीं खोता. गुलाम ने उत्तर दिया, ये होने के बावजूद मैं बस यही कह सकता हूं कि ईश्वर भले हैं. वह जो कुछ करते हैं, भले के लिए करते हैं. उसके इस तरह जवाब देने से राजा का गुस्सा भड़क गया. उसने गुलाम को गिरफ्तार करने का आदेश दिया. कुछ समय बाद राजा फिर शिकार पर गया. इस बार उसे जंगल में कुछ हिंसक लोगों ने पकड़ लिया, जो लोगों की बलि दिया करते थे. जब वे राजा की बलि की तैयारी कर रहे थे, तो उन्होंने पाया कि उसकी एक अंगुली नहीं है. इसलिए उन्होंने राजा को छोड़ दिया. उनके अनुसार, ईश्वर को भेंट चढ़ाने के लिए वह अधूरा था. महल लौटने पर राजा ने गुलाम को कैद से छोड़ने का आदेश दिया. राजा ने कहा कि मेरे प्रिय गुलाम, ईश्वर वास्तव में मेरे प्रति मेहरबान थे. मैं तो उन जंगली लोगों द्वारा मार ही दिया जाता, पर एक अंगुली नहीं होने के कारण छोड़ दिया गया.
लेकिन मेरे मन में प्रश्न यह है कि यदि ईश्वर भले हैं, तो फिर उन्होंने मुझे तुम्हें गिरफ्तार करने का आदेश क्यों दिया? गुलाम बोला-महाराज, यदि मैं आपके साथ शिकार पर जाता, तो वे लोग मेरी बलि चढ़ाते, क्योंकि मेरी सारी अंगुलियां साबूत है. इसलिए याद रखिए, ईश्वर जो भी करता है, भले के लिए करता है.
हम हमेशा अपने जीवन से नाखुश रहते हैं. जीवन में घटित अप्रिय चीजों के बारे में सोचते रहते हैं. हम यह बात भूल जाते हैं कि कुछ भी बस यूं ही नहीं होता. हर घटना के पीछे कुछ न कुछ कारण होता है. मैं एक बेहतर कंपनी में अच्छी सैलरी और सुविधाओं के साथ काम कर रहा था. लेकिन मेरे काम में कई चीजें बाधा बन रही थीं, जो मेरे उसूलों के खिलाफ थीं. तब मैंने नौकरी छोड़ने का निश्चय किया. मैंने एक तिहाई कम सैलरी पर अध्यापन का काम चुना. कार से स्कूटर पर आ गया. जीवन में उतार आना तकलीफदेह होता है, पर सही मायने में यह आपके भले के लिए ही होता है. यदि महीने भर सपना देखता रहूं, तो मुझे लगेगा कि ईश्वर मुझे भूल गये हैं, पर जब वह समस्याएं देते हैं, तब मुझे लगता है कि वह मेरा ध्यान रखते हैं. इसलिए सफलता का चौथा मंत्र है ईश्वर में विश्वास. याद रखें, सफलता का मॉडल चार चीजों पर निर्भर है-विनम्रता, ईमानदारी, कठिन परिश्रम और ईश्वर में विश्वास.
* पढ़ाई खत्म होना
संस्थान में जो सिखाया जाता है, उसका मकसद होता है कि आपके कैरियर में ये चीजें भागीदारी कर सकें. लेकिन अब चीजें बदल गयी हैं. संस्थानों से निकलने के बाद छात्र यह सोचते हैं कि पढ़ाई का समय खत्म हो गया है और कमाने का समय शुरू. जबकि उन्हें जानना होगा कि यह अंत नहीं है, बल्कि सीखने के नये दौर की शुरुआत है, जिसकी प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है. जीवन पर्यंत सीखने की प्रक्रिया से जीवन में सफलता की गारंटी दी जा सकती है. मैं आपको एक दिलचस्प कहानी सुनाता हूं, जो मार्शल आर्ट में दिये जानेवाले ब्लैक बेल्ट के अर्थ के बारे में है.
कई सालों के कठिन प्रशिक्षण के बाद मार्शल आर्ट का छात्र एक समारोह में ब्लैक बेल्ट लेने पहुंचा. उसने मास्टर सेंसी का झुक कर अभिवादन किया. सेंसी ने उससे कहा कि बेल्ट देने से पहले, मैं तुम्हारा एक और टेस्ट लूंगा. छात्र बोला, मैं तैयार हूं. उसने सोचा, कुछ और राउंड्स हो सकते हैं. मास्टर ने पूछा, इस सवाल का सही जवाब दो कि ब्लैक बेल्ट का वास्तविक अर्थ क्या है? छात्र ने कहा, मेरे अब तक के प्रशिक्षण का अंत. यह मेरे कठिन परिश्रम का फल है. मास्टर उसकी प्रतिक्रिया के लिए कुछ देर रुके. फिर कहा, मैं तुम्हारे उत्तर से संतुष्ट नहीं हूं. सेंसी ने अंत में कहा, तुम ब्लैक बेल्ट के लिए तैयार नहीं हो. एक साल बाद आना.
एक साल बाद जब छात्र फिर आया, तो मास्टर सेंसाइ ने पूछा, ब्लैक बेल्ट का मतलब क्या है? छात्र बोला-यह हमारी कला का सर्वोत्कृष्ट सम्मान है. मास्टर इससे आगे भी सुनना चाहता था. इस बार भी वे असंतुष्ट हुए, उन्होंने फिर कहा, तुम तैयार नहीं हो. अगले साल आना. एक साल बाद वह छात्र फिर आया. सेंसाइ ने फिर वही प्रश्न पूछा, ब्लैक बेल्ट का तात्पर्य क्या है? छात्र ने कहा- इसका मतलब प्रशिक्षण का अंत नहीं है, बल्कि अनुशासन, कठिन परिश्रम और कला को अधिक से अधिक ऊंचाई पर पहुंचाने की एक अंतहीन यात्रा है. मास्टर ने कहा, हां यह सही उत्तर है. तुम अब ब्लैक बेल्ट लेने के लिए तैयार हो. जाओ अपने काम की शुरुआत करो.
मेरा सभी एमबीए धारकों से अपील है कि वे संस्थानों से निकल कर सीखने के नये दौर की शुरुआत करें. एल्विन टॉफ्लर ने कहा था कि 21 वीं सदी में निरक्षर वे नहीं होंगे, जो लिखना-पढ़ना नहीं जानते, बल्कि वे होंगे जो सीखना, भूलना और फिर से सीखना नहीं जानते. मैं इसे ‘फास्ट फॉरगेटिंग स्किल’ कहना चाहता हूं. स्कूल के दिनों में मेरे माता-पिता मुझे लेकर बड़े चिंतित रहते थे. क्योंकि मैं कुछ नंबरों से पहली रैंक से चूक जाता था. तब मेरे माता-पिता ने एक ज्योतिषी से बात की. उनसे पूछा कि क्यों सारा पाठ पढ़ने के बावजूद वह प्रत्येक विषय में 100 में 100 नहीं कर पाता. मेरी कुंडली को देखने के बाद ज्योतिषी ने कहा, वह चीजों को तेजी से सीखता है और उसी गति से चीजों को भूल भी जाता है. मैंने कभी यह नहीं सोचा था कि मेरे इस गुण के कारण ही मुझे जीवन में सफलता मिलेगी.
* निष्कर्ष
भारत और अमेरिका के श्रेष्ठ बिजनेस स्कूलों से निकलने वाले एमबीए आक्रामक, अहंकारी, अनैतिक, भौतिकतावादी और खुद तक सीमित रखने वाले के रूप में देखे जाते हैं. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि दुनियाभर में एमबीए पाठय़क्रम में दाखिले में कमी देखी जा रही है. भारत में कई तीसरे दर्जे के बिजनेस स्कूल छात्रों के अभाव में बंद हो रहे हैं. यह एक संकेत है सभी एमबीए के लिए कि आप अपने नजरिये में बदलाव लायें और अधिक से अधिक विनम्र, ईमानदार, कड़ी मेहनत करने वाले और ईश्वर में भरोसा रखने वाले बनें. नौकरी पाने के लिए केवल दक्ष न बनें, बल्कि जीवन की परेशानियों का सामना करने के लिए भी सक्षम बनें. यदि वे चाहते हैं कि एमबीए नाम का प्राणी लुप्त न हो, तो निरंतर सीखने की आदत विकसित करनी होगी.
- एक कहानी सुनिए
एक बार एक गड़ेरिया सुनसान सड़क किनारे अपने भेड़ों के साथ जा रहा था. तभी एक नयी बीएमडब्लू कार आ कर रुकी. गाड़ी से अरमनी सूट पहने हुए, पैरों में सेरूटी जूते, रे बैन सन ग्लासेज, टैग-हेर रिस्ट वॉच और पियरे कार्डिन टाइ पहने एक व्यक्ति बाहर निकला. उसने गड़ेरिये से पूछा, यदि मैं तुम्हें बता दूं कि तुम्हारे पास कितनी भेड़ें हैं तो क्या तुम मुझे एक भेड़ दोगे? गड़ेरिये ने उसे एक नजर देखा और फिर अपनी भेड़ों के झुंड को. उसने कहा-ठीक है. उस व्यक्ति ने अपने लैपटॉप को मोबाइल-फैक्स से जोड़ा. फिर इंडियन जियोलॉजिकल की वेबसाइट खोली. उसकी जीपीएस तकनीक से उस जगह को स्कैन किया. डाटाबेस खोला. 60 एक्सल वाले टेबल को लघुगणकों और पाइवट टेबल से भरा. फिर अपने मिनी प्रिंटर से 150 पेज का एक प्रिंट आउट निकाला और गड़ेरिये से बोला-तुम्हारे पास कुल 1586 भेड़ हैं. गड़ेरिया मुस्कुराया. बोला, बिल्कुल सही. तुम अपनी भेड़ ले जा सकते हो. उस युवक ने झुंड में से भेड़ ली और उसे बीएमडब्लू कार की डिक्की में रख लिया.
गड़ेरिये ने उसकी ओर देखा और कहा, यदि मैं यह बता दूं कि तुम कौन हो, तो क्या तुम मेरा जानवर मुझे लौटा दोगे? युवक ने कहा, हां क्यों नहीं. गड़ेरिये ने कहा कि तुम आइआइएम अहमदाबाद से निकले एमबीए हो. युवक ने पूछा, तुम यह कैसे जानते हो? गड़ेरिया बोला, यह तो बहुत ही आसान है. पहली बात यह कि तुम यहां बिन बुलाये आये. दूसरी, तुमने मुझसे कुछ बताने के एवज में फीस ली, जिसके बारे में मैं पहले से ही जानता था. तीसरी बात यह कि तुम मेरे बिजनेस के बारे में कुछ भी नहीं समझते. क्या अब मैं अपना कुत्ता वापस ले सकता हूं?
* सबक
हमलोग बहुत सौभाग्यशाली हैं. हमारे माता-पिता इतने समृद्ध हैं कि पढ़ाई की फीस भर सकते हैं और हमें उच्च शिक्षा दिला सकते हैं. लेकिन इससे आप या मैं गड़ेरिये या नाविक से अधिक श्रेष्ठ नहीं हो जाते. मेरे बचपन का एक दोस्त जो कभी आर्थिक तंगी के कारण गांव छोड़ कर चला गया था, आज सफल उद्योगपति है. उसने होटल में वेटर का काम करने से लेकर दुकानों पर सेल्समैन का काम किया. फिर धीरे-धीरे साइकिल पर एल्यूमीनियम के बरतन बेचने लगा. बाद में उसने इसकी फैक्टरी लगा ली. आज वह अपना बिजनेस चलाने के लिए एमबीए वालों को नौकरी देता है. इसलिए कभी दूसरों की क्षमता को नजरअंदाज न करो. कभी घमंड न रखो. विनम्र बने रहो. नारायण मूर्ति, अब्दुल कलाम या महात्मा गांधी की तरफ देखो. सभी साधारण और विनम्र हैं. आप क्या सोचते हैं, आप महान हैं? सफलता का पहला पाठ है विनम्रता.

Student-surplus IIMs see fewer employers

Top B-schools are connecting with more companies and extending their placement windows to ensure that the entire batch is placed.

As on date, a number of Indian Institutes of Management (IIMs) have been finding it difficult to place 5-10 per cent of their students within the stipulated placement period.
A spurt in the number of students graduating from B-schools and a general sluggishness in the economy are being cited as reasons.

“This is just a blip. This is because even while the economy has picked up the recruitments have been sluggish. But the situation is set to improve in a year or two,” said Krishanu Rakshit, placements chairperson at IIM-Calcutta.

IIM-C, which had kicked off its final placements on March 3, has over five per cent of its 462-odd batch left without job placements. “We are hopeful of placing them in the next two-to-three days,” Rakshit said.
According to Ashok Banerjee, Dean, New Initiatives and External Relations, IIM-C, the trouble with placements was primarily because of lower demand and higher supply due to the extended batch size. The institute had around 350 candidates last year.

“There are certain candidates who are looking to venture into entrepreneurship and we are planning to set up incubation centre to help such candidates,” Banerjee said.

IIM-Rohtak is hopeful of placing five per cent of its 123-odd batch in the next 2-3 days. “Last year our batch size was 47, this has increased to 123 this year. So we are connecting with more companies to ensure placements,” said Pranit Upadhyay, placement committee, IIM-Rohtak.

INNOVATIVE COURSES

According to M.J. Xavier, Director of IIM-Ranchi, management schools should look at aligning their course with the industry demand. “While more number of students and lower demand is a reason, we need to be innovative and look at what the industry wants,” he said.

IIM-Ranchi has started analytics as an area of specialisation to meet the industry demand, he said.
“B-schools should take a sectoral view and look at offering courses on health management and infrastructure management among others,” he pointed out.

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