Monday, April 15, 2013

Wrong Policies Of Manmohan Singh Led government ARe root Causes For Current Fiscal Problems


गलत नीतियों की देन है मंदी


।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।।
अर्थशास्‍त्री
- वर्तमान खपत नियंत्रित करने और निवेश बढ़ाने से दीर्घकाल में खपत बढ़ती है. मनमोहन सिंह की पॉलिसी इसके ठीक विपरीत है. वे सरकारी खजाने से वोट ‘खरीदना’ चाहते हैं. -
देश की आर्थिक विकास दर गिरती जा रही है. इसका कारण मनमोहन सिंह के द्वारा लागू किया गया विकास का मॉडल है. मनमोहन सिंह की पॉलिसी में बड़े उद्योगों को आम आदमी के रोजगार हनन की छूट दी जाती है. फिर बड़े उद्योगों पर टैक्स लगा कर गरीब को बेरोजगारी भत्ता दिया जाता है, जैसे मनरेगा में. इस मॉडल में समस्या यह है कि आम आदमी की ऊर्जा स्फुरित नहीं होती है. वह बैठ कर भिक्षा पर ही जीवन यापन करता है. वह जो उत्पादन कर सकता था, वह नहीं होता है. इसलिए उत्पादन घटता है और विकास दर घट रही है.
विकास दर में आ रही वर्तमान गिरावट के कारण को समझने के लिए विकास की मूल प्रक्रिया को समझने का प्रयास करें. एक रिक्शावाला दिन में 300 रुपये कमाता है, जिसमें 100 रुपये की बचत करता है. कुछ समय बाद वह ऑटो रिक्शा खरीद लेता है. अब उसकी दैनिक आय बढ़ कर 800 रुपये हो जाती है. अब वह 300 रुपये की बचत करता है. फिर भी उसकी खपत 200 रुपये से बढ़ कर 500 रुपये हो जाती है. यानी अल्प समय में खपत कम करके निवेश बढ़ाने से आर्थिक विकास होता है.
मान लें कि एक दूसरा रिक्शेवाला भी रोजाना 300 रुपये कमाता है. वह पूरी आय की खपत करता है. कोई निवेश नहीं करता है. समय क्रम में शहर में ऑटो रिक्शा का चलन बढ़ता है, जिससे रिक्शे की मांग कम हो जाती है. ऐसे में उसकी आय 300 रुपये रोजाना से घट कर 200 रुपये ही रह जाती है. वह पत्नी के जेवर बेच कर गुजारा करता है. यह भी ज्यादा समय तक नहीं चलता है. यानी वर्तमान खपत बढ़ाने से आर्थिक विकास टूटता है.
यही फॉर्मूला देश पर भी लागू होता है. वर्तमान खपत नियंत्रित करने और निवेश बढ़ाने से दीर्घकाल में खपत बढ़ती है. मनमोहन सिंह की पॉलिसी इसके उलट है. वे सरकारी खजाने से वोट खरीदना चाहते हैं. पिछले चुनाव में मनरेगा के माध्यम से ‘वोट भत्ता’ दिया गया और ऋण माफ किये गये. इन कदमों से खपत बढ़ी. तदानुसार सरकार के पास हाइवे आदि बनाने के लिए धन की कमी रही. साथ-साथ राजस्व एकत्रित करने के लिए सरकार ने टैक्स बढ़ाये.
इससे कंपनियों का मनोबल टूटा. उनके पास निवेश के लिए रकम कम रही. बढ़ते खर्चों को पोषित करने के लिए सरकार ने बाजार से बड़े पैमाने पर ऋण लिया. इससे ब्याज दर में वृद्धि हुई और कंपनियों के लिए निवेश करना पुन: कठिन हो गया. निवेश कम होने से टैक्स वसूली कम हुई. सरकार का घाटा बढ़ता गया. अंतत: सरकार को सार्वजनिक इकाइयों के शेयर बेचने पड़ रहे हैं, ठीक उसी तरह जैसे रिक्शेवाले को पत्नी के जेवर बेचने पड़े थे.
उद्यमियों पर टैक्स लगा कर वोट खरीदने की पॉलिसी को मनमोहन सिंह ने विदेशों से सीखा है. वहां उद्यमियों पर टैक्स भारत से ज्यादा है तथा वहां गरीबों को बेरोजगारी भत्ता, मुफ्त निवास आदि दिये जाते हैं. लेकिन एक मौलिक अंतर है. अमेरिका की आय हमसे दस गुना है और जनसंख्या हमसे चौथाई. अमेरिका में गरीबों की संख्या भी कम है. अत: उन्हें उद्यमी पर टैक्स कम लगाना पड़ता है.

टैक्स का दुष्प्रभाव पड़ता है, लेकिन हमारी तुलना में बहुत कम. वही पॉलिसी भारत में असफल हो जाती है, क्योंकि यहां आय कम और गरीबों की संख्या जादा है. यूं समझिये कि तालाब से पानी निकाल कर 10 लोगों को पानी पिलाने से तालाब का कुछ नुकसान नहीं होता है, किंतु कुएं से पानी निकाल कर 1000 लोगों को पिलाने से कुआं सूख जाता है. इसलिए कल्याणकारी खर्च की पॉलिसी अमेरिका में सफल है और भारत में असफल. इसके अलावा मनमोहन सिंह द्वारा बड़ी कंपनियों को छूट दी जा रही है कि वे गरीबों के राजगार का हनन करें. खुदरा बिक्री में वालमार्ट को प्रवेश दिया जा रहा है.
एकल गुड्स और सर्विस टैक्स के माध्यम से गरीब की साइकिल और अमीर की मर्सडीज कार पर एक ही दर से टैक्स लगाने का प्रयास किया जा रहा है. पर्यावरण स्वीकृति के नियम ढीले किये जा रहे हैं. इन कदमों से गरीबी बढ़ रही है. फलस्वरूप गरीबी उन्मूलन पर खर्च बढ़ाना अनिवार्य होता जा रहा है.
इस परिप्रेक्ष्य में आर्थिक विकास दर बढ़ाने के लिए दिये जा रहे सुझावों को समझना होगा. मांग है कि भूमि अधिग्रहण, पर्यावरण स्वीकृति तथा गुड्स एंड सर्विस टैक्स को शीघ्र लागू किया जाये. यह सही है कि इन कदमों से उद्यमी को राहत मिलेगी, परंतु इन्हीं कदमों से गरीबी बढ़ेगी, कल्याणकारी खर्च बढ़ेंगे और टैक्स ज्यादा वसूलना होगा.
दूसरा सुझाव है कि टैक्स की दर में कटौती की जाये. यह संभव नहीं है, क्योंकि बढ़ती असमानता से निबटने के लिए सरकारी खर्चो में वृद्धि जरूरी है. तीसरा सुझाव है कि ब्याज दरों को कम रखा जाये. सरकार को ऋण कम लेने चाहिए. उसे अपने खर्चो में कटौती करनी चाहिए, परंतु सरकारी खर्चो में कटौती करना मुश्किल है. ‘वोट खरीदने’ के लिए खर्च बढ़ाना जरूरी है.
चौथा सुझाव है कि सार्वजनिक इकाइयों की बिक्री शीघ्र की जाये, परंतु यह समस्या का हल नहीं है. जैसे पत्नी के जेवर बेचने से रिक्शेवाले के नीचे गिरते जीवन स्तर का हल नहीं होता है. मैं समझता हूं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सरकारी अर्थशास्त्रियों के पास समस्या का हल है ही नहीं, क्योंकि वे जन बाहुल्य भारत में सरकारी कार्यक्रमों से जन कल्याण हासिल करना चाहते हैं.
सुझाव है कि आम आदमी के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए रोजगारपरक आर्थिक नीतियां बनायी जायें. उन विशेष तकनीकों को चिह्न्ति किया जाये, जिससे रोजगार का बहुत नुकसान हो रहा है, जैसे हार्वेस्टर, पावरलूम इत्यादि. इन चुनिंदा क्षेत्रों में ऑटोमेटिक मशीनों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए, जिससे रोजगार बढ़े. साथ-साथ मनरेगा के माध्यम से ‘बेरोजगारी भत्ता’ देने के स्थान पर उद्यमियों को रोजगार सब्सिडी देनी चाहिए. मनरेगा और रोजगार सब्सिडी में मौलिक अंतर है. मनरेगा में किये गये कार्यो से उत्पादन कम ही बढ़ता है. रोजगार सब्सिडी से उत्पादन बढ़ेगा, जिससे रोजगार पैदा होंगे और मनरेगा जैसे कार्यक्रमों पर अनुत्पादक खर्च घटाये जा सकेंगे.
दूसरा सुझाव है कि सरकारी खर्च की दिशा में परिवर्तन करना चाहिए. वर्तमान में सरकार का अधिकाधिक राजस्व सरकारी कर्मियों के वेतन तथा वोट खरीदने के भत्ते में खप रहा है. इस खपत को उत्पादक खचरें की तरफ मोड़ना चाहिए. निजी सहयोग से हाइवे बनाना ठीक है, परंन्तु निजी कंपनियों मात्र पर आश्रित हो जाना हानिप्रद है. अनेक ऐसे क्षेत्र हैं, जहां हाइवे पर टोल वसूलना संभव नहीं है. ऐसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाना चाहिए
As long as person like Manmohan Singh is PM of India one cannot imagine of any action against corrupt politicians and corrupt ministers belonging to Congress parties and that to allies. He may be a well reputed and talented economist, he can be a good lecturer in college or a good teacher for students of economics, but he is totally failure in administration, he is acting as PM but it is he during whose tenure when fraud, cheating, misappropriation of money, naxalism, terrorism, price rise has gone up in unprecedented ratio and volume and it has become beyond control.
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Current Crisis Of Central Government Is Creation Of Congress Government And Bitter Truth Is That Without Curbing Corruption Congress Party Cannot Contain Current Crisis



Dirty Politics of Central Government has landed India into Crisis; Social, Political International as well as Financial. Present position of India's economy is that despite all big promises made by the government, they are unable to contain price rise, they are unable to control cancer of corruption and they are unable to control and reduce dangerous growth of naxalism and terrorism.

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Tuesday, September 18, 2012

Why FDI is Important and Unavoidable



FRIDAY, NOVEMBER 25, 2011

Walmart in India
Union Cabinet has decided to permit Foreign Direct Investment upto 51% in retail sector. When India got independence from Black rule of British in 1947, leaders of the country promised to make India self dependent , they told the Nation that they will use its own resources to build India strong and give Indians all comforts which they deserve for respectful living. 

http://dkjain4970920122007.blogspot.in/2011_11_01_archive.html

Copy of above blog is once again presented below because Congress Party has once again announced FDI in Retail .

Union Cabinet has decided to permit Foreign Direct Investment upto 51% in retail sector. When India got independence from Black rule of British in 1947, leaders of the country promised to make India self dependent , they told the Nation that they will use its own resources to build India strong and give Indians all comforts which they deserve for respectful living. 


More than half a century has elapsed; Indian instead of becoming a self sufficient Nation has now become dependent on FDI for survival. Indian leaders go for foreign tours begging FDI in India in different sector. Perhaps Indian leaders has as per their comforts redefined Independence and self dependence.



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