Tuesday, May 5, 2015

Real Problem Of Farmers


किसानों के लिए ख्याली पुलाव- Prabhat Khabar-04.05.15
डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
किसान की स्थिति में सुधार करने का एकमात्र उपाय है कि फसल के दाम बढ़ाये जायें, जिससे वह मौसम की मार को ङोल सके तथा ड्रिप सिंचाई के उपकरण खरीद सके. ध्यान रहे, देश में दाम ऊंचे होंगे, तो सस्ते आयात प्रवेश करेंगे..
 
असमय बारिश तथा तूफान से संपूर्ण उत्तर भारत में खेती का भारी नुकसान हुआ है और लगभग एक हजार किसान आत्महत्या करने को मजबूर हुए हैं. इन आत्महत्याओं का ठीकरा सिर्फ मौसम पर फोड़ना उचित नहीं होगा, क्योंकि ऐसी घटनाएं होती ही रहती हैं. 
 
असल समस्या है कि किसान की सहनशक्ति का हृस हो गया है. किसान का बैंक बैलेंस समाप्त हो गया है. एक फसल खराब हुई, तो वह चारों खाने चित. बैंक तथा साहूकार उसके घर ऋण वसूली को पहुंच जाते हैं. किसान की एकमात्र समस्या है कि उसे फसल का पर्याप्त मूल्य नहीं मिलता है. बिजली नहीं मिलती है. खाद के दाम ऊंचे हैं. फसल ज्यादा हो गयी, तो मंडी में दाम गिर जाता है. फसल कम हुई तो बेचने को भूसा बचता है और पुन: किसान पिटता है. 
 
पिछले साठ वर्षो में सरकार की पॉलिसी रही है कि खाद्यान्न के मूल्य न्यून रखो, जिससे शहरी मिडिल क्लास को आराम मिले. खेती घाटे का व्यवसाय होने से किसान का बैंक बैलेंस शून्य है और उसकी सहनशक्ति कमजोर है.
 
नरेंद्र मोदी ने किसानों को ‘सॉयल हेल्थ कार्ड’ देने की योजना बनायी है. इससे पता लगेगा कि भूमि में किस उर्वरक की कमी है. यह पता चलने पर किसान फर्टिलाइजर की उचित मात्र का उपयोग करेगा और अच्छी फसल उगायेगा. परंतु ज्यादा फसल होने पर दाम गिरेंगे ही और किसान पिटेगा ही. मोदी का दूसरा प्रस्ताव है कि अच्छी मंडियां स्थापित की जायेंगी. परंतु इससे किसान को दाम ऊंचा कैसे मिलेगा? मंडी में दाम बाजार भाव के हिसाब से तय होते हैं. 
 
आधुनिक कंप्यूटरीकृत मंडी बनाने से गृहिणी 10 रुपये के स्थान पर 12 रुपये में आलू खरीदने लगेगी क्या? मोदी का तीसरा सुझाव है कि किसान ड्रिप एवं स्प्रिंकलर से सिंचाई करें. लेकिन इसका खर्च कौन उठायेगा? उससे उपजी अधिक फसल कंप्यूटरीकृत मंडी में पहुंचेगी, तो उसे पानी के भाव बिकने से कौन रोक पायेगा? मोदी की कृषि पॉलिसी यूपीए की तरह असफल है. किसान को फसल का उचित दाम दिलाने का मोदी के पास एक भी उपाय नहीं है.
 
पस्त किसान को मोदी पेंशन का ख्याली पुलाव परोस रहे हैं. उन्होंने कहा है कि सरकार ने योजना बनायी है, जिसमें ‘पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप’ यानी पीपीपी मॉडल पर किसानों को 60 साल की उम्र के बाद हर महीने पांच हजार की पेंशन मिल सकती है. प्रधानमंत्री ने पीपीपी मॉडल की रूपरेखा को स्पष्ट नहीं किया है, लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने स्पष्ट किया है कि यह नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) के समान हो सकता है. 
 
सरकारी कर्मियों के लिए एनपीएस अनिवार्य है. इन्हें अपने वेतन का 10 प्रतिशत इस योजना में जमा करना होगा और इतना ही सरकार के द्वारा जमा कराया जाता है. लेकिन गैरसरकारी पॉलिसी धारकों को यह योगदान नहीं दिया जाता है. इनके द्वारा जो रकम जमा करायी जाती है, उसी के अनुसार पेंशन दी जाती है.
 
यूपीए सरकार के स्वावलंबन योजना में मोदी ने मामूली परिवर्तन किया है. 1,000 रुपये से कम प्रीमियम जमा कराने पर सरकार बराबर का अनुदान देगी. अनुदान पांच वर्षो तक दिया जायेगा. लेकिन मूल समस्या पूर्ववत् बनी रहती है. 5,000 के अनुदान को पाने के लिए पॉलिसी धारक को 20,000 रुपये का प्रीमियम जमा कराना होगा. यह 5,000 रुपया प्रलोभन है. जैसे कोई यात्री दिल्ली से मुंबई जाना चाहता है. 
 
मोदी जी ने कहा कि मैं तुम्हारी मदद करूंगा. उन्होंने यात्री को दिल्ली से फरीदाबाद तक का टिकट दिलाया और कहा कि आगे का टिकट आप स्वयं खरीद लीजिए. यात्री को मुंबई भेजने की शाबाशी मोदी जी को मिलेगी, जबकि मूल खर्च यात्री ही वहन करेगा.
किसान की स्थिति में सुधार करने का एकमात्र उपाय है कि फसल के दाम बढ़ाये जायें, जिससे वह मौसम की मार को ङोल सके तथा ड्रिप सिंचाई के उपकरण खरीद सके. ध्यान रहे, देश में दाम ऊंचे होंगे, तो सस्ते आयात प्रवेश करेंगे. 
 
अत: सरकार को डब्लूटीओ में मौलिक परिवर्तन के लिए दूसरे देशों को लामबंद करना होगा. विकसित देश किसान को भारी सब्सिडी दे रहे हैं. उनकी लागत ज्यादा है, पर सब्सिडी के बल पर वे अपने माल को अंतरराष्ट्रीय बाजार में सस्ता बेच रहे हैं. 
 
यह सस्ता माल भारत में भी प्रवेश कर रहा है. फलस्वरूप हमारा किसान पस्त है. दूसरे, ऊंची कीमत के वैल्यू एडेड कृषि उत्पादों के निर्यात पर सब्सिडी दें. फल, फूल, सब्जी, बासमती चावल के निर्यात को प्रोत्साहन दें, जिससे हम विकसित देशों को उन्हीं के अस्त्र से पलटवार कर सकें. निर्यात बढ़ने से देश के कृषि उत्पादों के मूल्य बढ़ेंगे और किसान सुखी होगा. 
 
तीसरे, फास्फेट व पोटाश का आयात करने के स्थान पर भूसा और गोबर का आयात करना चाहिए. प्राकृतिक उर्वरकों के सस्ते में उपलब्ध होने से किसान स्वयं ही रासायनिक खादों का इस्तेमाल कम करेगा. मोदी को किसान की मूल समस्याओं पर चर्चा करनी चाहिए.

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