Thursday, June 30, 2016

Tweets To Manak Gupta News 24 On Animal Slaughter

Debate On News 24 on animal slaughter 30th June 2016 Manak Gupta is anchor

Animal slaughter by people  is done only to satisfy their hunger to eat meat.None of God teaches killing of its own creation.

Irfan has rightly and boldly said that kurbani of goat is insult to Islam. Actually all types of kurbani is like cheating God


Animals are creation of God and God do not ask for killing them.Similarly  parent never want to kill their children.Ban killing


All types of violance is prohibited in all types of religion. It is only followers of religion who interpret it in their own way


It is not government which can stop slaughter of animals.It is human being who to ask their soul whether killing is liked by God


Religion says to kill sins. Weapons in the hands of Deity like Durga are only symbolic . They advise us to kill our bad habits


Jo jaisa karam karta hai wo waisa hi bhogta hai. Jo pashu ko khate hai unki budhhi bhi pashu ki tarah hi ho jati hai. Iswar says


My research says , persons who eats pigs behave, appear and act  like pig, who eats chicken or goat behave like chicken and Goat and so on


 Please do not link & confine animal slaughter with a religion , everyone whoever eats meat of animal is guilty in the eye of God


 Research has proved that people who are vegetarian are suffering of lesser number of diseases than those who are non-vagetarian


People are cheater, liar and dishonest,  their mind, body and soul say differently They worship God and kill Creatures of God.


Manak ji , aap ke bhi mind me kya hai, aap bol kya rahe hai aur apki body kya bolti hai, God only knows. Same applies to all


In case of Crisis, all Guru Pray God for protection.But same  Guru consider him as protector of God.  In fact,God protects all.


I submit below some important information collected from other sources. Following is valued writing of others.


जिस तरह से हाल ही में भारत में देशद्रोही नारों का माहौल बना है उससे भारत की छवी पर गलत असर पड़ा है। ये सब बातें बेहद गंभीर हैं। आज का युवा जिस तरह  से खान-पान का सेवन कर रहा है उससे उसके दिमाग में भी असर पड़ता जा रहा है। प्राचीन आयुर्वेद में कहा गया है कि जैसे खाओ अन्न वैसा होगा मन। आजकल के युवाओं को जरूरत है कि वे अपने खान-पान में कुछ ऐसी चीजों को शामिल करे जिससे दिमाग शांत रहे और वह समाज और देश को अपने अच्छे विचार दे सके।

‘जैसा खाये अन्न, वैसा बने मन। जैसा पिये पानी, वैसी बने वाणी। जैसा करे संग, वैसा चढ़े रंग।” तो मित्रों के, रिश्तेदारों आदि के घर में भ्रष्टाचार का धन आता है और वहाँ जाना ही होता है। वहाँ का अन्न, पानी ग्रहण न करने पर संबंध बिगड़ते हैं। और यदि स्वीकार करेंगे, तोमन बिगड़ेगा। बताइये क्या करना चाहिये?


आपके मित्र-संबंधी, रिश्तेदार जिनके बारे में आपने यह प्रश्न लिखा है, कि वो चोरी से, बेईमानी से, भ्रष्टाचार से धन कमाते हैं? क्या वो सारा सौ प्रतिशत धन चोरी, बेईमानी से कमाते हैं या फिर कुछ मेहनत, ईमानदारी से भी कमाते हैं। कुछ तो मेहनत से कमाते हैं, कुछ तो ईमानदारी का होता है। मित्रों के यहाँ और रिश्तेदारी में, आना-जाना, खाना-पीना सब कुछ करना पड़ता है। तो जब आपको वहाँ खाना-पीना पड़े तो उनकी जो मेहनत और ईमानदारी की कमाई है, उसमें से खा लेना। बेईमानी वाला छोड़ देना, वो मत खाना। आपका मन भी नहीं बिगड़ेगा और रिश्ता भी नहीं बिगड़ेगा, दोनों ठीक बने रहेंगे। समाधान तो यही है।

इसे और स्पष्ट समझने के लिये एक अन्य उदाहरण देता हूँ। एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा – ‘ सेठ लोगों का धन कुछ ईमानदारी का और कुछ बेईमानी का (मिला-जुला( होता है। अतः उन सेठों से दान लेना उचित है ? मैंने कहा- ‘हाँ, दान लेना चाहिये। दान देना एक पुण्य कर्म है। कोई सेठ पुण्य कमाना चाहे तो क्या उसे पुण्य कमाने का अधिकार नहीं है। यदि है तो वह दान देगा, और संस्था लेगी। वह व्यक्ति बोला- ‘सेठ का धन तो मिला-जुला है। संस्था उससे दान लेगी, तो संस्था वालों में भी बेईमानी का दोष आ जायेगा।’ मैंने कहा- क्या कोई व्यक्ति अपने जीवन में सारे कर्म अच्छे ही करता है या कुछ बुरे भी करता है? यदि दोनों प्रकार के करता है तो सेठ जो दान देता है, वह अच्छा कर्म है। और व्यापार में जो थोड़ी बहुत बेईमानी करता है, वह बुरा कर्म है। वह अलग कर्म है। बुरे कर्म का दण्ड उसे भोगना पड़ेगा। आप इन दोनों कर्मो को मिश्रित (मिक्स( मत करिये। सेठ कर्म करने में स्वतंत्र है। वह कुछ काम अच्छे भी करता है और कुछ बुरे भी करता है। ऐसे ही सभी लोग करते हैं। आपको पाप तो तब लगेगा, जब आप मित्रों-संबंधियों के घर जाकर उनकी वस्तुयें चुराकर खायेगें। तब वह बुरा कर्म होगा। यदि वे लोग प्रेमपूर्वक, श्रृ(ापूर्वक आपको भोजन आदि खिलाते हैं, और आप खाते हैं, तो इसमें कोई बुराई नहीं है।


जैसा अन्न वैसा मन : सात्त्विक भोजन से सात्त्विकता स्वतः बढ़ेगी       

आप क्या खाते पीते हो? आप ऐसी चीज खाते-पीते हो जिससे बुद्धि विनष्ट हो जाय और आपको उन्माद-प्रमाद में घसीट ले जाय? आप अपेय चीजों का पान करेंगे तो आपकी बुद्धि भ्रष्ट हो जायेगी । भगवान का चरणोदक या शुद्ध गंगाजल पियेंगे तो आपके जीवन में पवित्रता आयेगी । इस बात पर भी ध्यान रखना जरूरी है कि जिस जल से स्नान करते हो वह पवित्र तो है न?

आप जो पदार्थ भोजन में लेते हो वे पूरे शुद्ध होने चाहिए। पाँच कारणों से भोजन अशुद्ध होता हैः

# अर्थदोषः जिस धन से, जिस कमाई से अन्न खरीदा गया हो वह धन, वह कमाई ईमानदारी की हो । असत्य आचरण द्वारा की गई कमाई से, किसी निरपराध को कष्ट देकर, पीड़ा देकर की गई कमाई से तथा राजा, वेश्या, कसाई, चोर के धन से प्राप्त अन्न दूषित है । इससे मन शुद्ध नहीं रहता ।

# निमित्त दोषः आपके लिए भोजन बनाने वाला व्यक्ति कैसा है? भोजन बनाने वाले व्यक्ति के संस्कार और स्वभाव भोजन में भी उतर आते हैं । इसलिए भोजन बनाने वाला व्यक्ति पवित्र, सदाचारी, सुहृद, सेवाभावी, सत्यनिष्ठ हो यह जरूरी है ।

पवित्र व्यक्ति के हाथों से बना हुआ भोजन भी कुत्ता, कौवा, चींटी आदि के द्वारा छुआ हुआ हो तो वह भोजन अपवित्र है।

# स्थान दोषः भोजन जहाँ बनाया जाय वह स्थान भी शांत, स्वच्छ और पवित्र परमाणुओं से युक्त होना चाहिए । जहाँ बार-बार कलह होता हो वह स्थान अपवित्र है । स्मशान, मल-मूत्रत्याग का स्थान, कोई कचहरी, अस्पताल आदि स्थानों के बिल्कुल निकट बनाया हुआ भोजन अपवित्र है। वहाँ बैठकर भोजन करना भी ग्लानिप्रद है ।

# जाति दोषः भोजन उन्ही पदार्थों से बनना चाहिए जो सात्त्विक हों । दूध, घी, चावल, आटा, मूँग, लौकी, परवल, करेला, भाजी आदि सात्त्विक पदार्थ हैं । इनसे निर्मित भोजन सात्त्विक बनेगा । इससे विपरीत, तीखे, खट्टे, चटपटे, अधिक नमकीन, मिठाईयाँ आदि पदार्थों से निर्मित भोजन रजोगुण बढ़ाता है । लहसुन, प्याज, मांस-मछली, अंडे आदि जाति से ही अपवित्र हैं । उनसे परहेज करना चाहिए नहीं तो अशांति, रोग और चिन्ताएँ बढ़ेंगी ।

# संस्कार दोषः भोजन बनाने के लिए अच्छे, शुद्ध, पवित्र पदार्थों को लिया जाये किन्तु यदि उनके ऊपर विपरीत संस्कार किया जाये – जैसे पदार्थों को तला जाये, आथा दिया जाये, भोजन तैयार करके तीन घंटे से ज्यादा समय रखकर खाया जाये तो ऐसा भोजन रजो-तमोगुण पैदा करनेवाला हो जाता है।

विरुद्ध पदार्थों को एक साथ लेना भी हानिकारक है जैसे कि दूध पीकर ऊपर से चटपटे आदि पदार्थ खाना । दूध के आगे पीछे प्याज, दही आदि लेना अशुद्ध भी माना जाता है और उससे चमड़ी के रोग, कोढ़ आदि भी होते हैं । ऐसा विरुद्ध आहार स्वास्थय के लिए हानिकारक है ।

खाने पीने के बारे में एक सीधी-सादी समझ यह भी है कि जो चीज आप भगवान को भोग लगा सकते हो, सदगुरु को अर्पण कर सकते हो वह चीज खाने योग्य है और जो चीज भगवान, सदगुरु को अर्पण करने में संकोच महसूस करते हो वह चीज खानापीना नहीं चाहिए । एक बार भोजन करने के बाद तीन घण्टे से पहले फल को छोड़ कर और कोई अन्नादि खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ।

खान-पान का अच्छा ध्यान रखने से आपमें स्वाभाविक ही सत्त्वगुण का उदय हो जायेगा। जैसा अन्न वैसा मन । इस लोकोक्ति के अनुसार सदुर्गुण एवं दुराचारों से मुक्त होकर सरलता और शीघ्रता से दैवी सम्पदा कि वृद्धि कर पाओगे ।

— साभार वैदेही शर्मा

जैसा शरीर वैसा खाना

  • सुमन परमार
आयुर्वेद के मुताबिक वात, पित्त और कफ हमारे शरीर का आधार हैं। शरीर को स्वस्थ रखने में इन तीनों का संतुलन अहम भूमिका निभाता है। जरूरी है कि इस संतुलन को बनाए रखने के लिए हम उचित आहार चुनें। सुमन परमार की रिपोर्ट शरीर की रचना, खानपान की पसंद और प्रकृति के मामले में हर इंसान अपने आप में अलग है। एक ही परिवार के अलग-अलग सदस्यों में ऐसी विविधताएं अक्सर नजर आती हैं।

मसलन, भोपाल की 34 वर्षीय गृहिणी गीता शर्मा के पति सुधीर की खानपान में कोई दिलचस्पी नहीं है, जबकि 4 साल का उनका बेटा तरुण सब कुछ खाता है। फिर भी देखने में पिता-पुत्र एकदम एक जैसे दुबले-पतले हैं। खुद गीता इन दोनों से अलग हैं, जो वजन घटाने के ढेरों नुस्खे आजमाती रहती हैं। यहां हैरानी की बात यह है कि बॉडी टाइप और खान-पान संबंधी जरूरत अलग- अलग होने के बावजूद उनके घर में सबके लिए हमेशा एक जैसा खाना ही बनता है।

दरअसल, संरचना के मुताबिक आज के दौर में अपने शरीर को स्वस्थ रखना सबसे बड़ी चुनौती है। चिकित्सा विज्ञान की विभिन्न शाखाएं इस बात पर जोर देती हैं कि हमारा आहार शरीर की बुनियादी संरचना के मुताबिक होना चाहिए। इस बात को तार्किक रूप से स्पष्ट करता है आयुर्वेद में मौजूद त्रिदोष सिद्धांत। आयुर्वेद के इस आधारभूत दर्शन के मुताबिक वात, पित्त, कफ ही त्रिदोष हैं। वात का अर्थ है गति, विनाश आदि।



शरीर की चलने की शक्ति ही गति है। पित्त का अर्थ है, तप्त (गरम) करना। वह शरीर का मेटाबॉलिज्म बताता है। कफ का अर्थ है, जो जल से विकास पाता हो या जल से लाभ प्राप्त करता हो। त्रिदोष का काम है शरीर के बुनियादी काम-क्षपण (जो गैरजरूरी चीजें खत्म करता है), पचन (जो पाचन करते है) और पोषण (जो पुष्ट करता है) को पूरा करना। आयुर्वेद में त्रिदोष का मतलब क्षति या हानि नहीं है।



शरीर को स्वस्थ रखने वाले घटकों के रूप में इसका प्रयोग किया गया है। दोष वे द्रव्य हैं जो शरीर के घटक हैं। सुश्रुत के अनुसार त्रिदोष मानव शरीर की उत्पत्ति का कारक भी हैं। त्रिदोष की दो दशाएं होती हैं-शरीर संबंधी धातुरूप और रोग संबंधी रोग रूप। दोष जब संतुलित अवस्था में रहते हैं तब वे अच्छी सेहत का आधार बनते हैं। यदि उसका क्रम बिगड़े यानी शरीर में उनकी मात्रा में असंतुलन हो तो शरीर रोगग्रस्त हो जाएगा।


आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. अच्युत कुमार त्रिपाठी के मुताबिक, ‘प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में उसकी प्रकृति के अनुसार निश्चित अनुपात में वात, पित्त, कफ रहेंगे। इनमें से एक की शरीर में प्रधानता उस व्यक्ति का बॉडी टाइप तय करती है, लेकिन शरीर में इनका अनुपात कम-ज्यादा होने पर रोग उत्पन्न होते हैं।’ हर व्यक्ति की शरीरिक संरचना आनुवंशिक गुणों के अलावा शरीर में मौजूद हड्डियों की बनावट पर निर्भर करती है। इसलिए हर व्यक्ति की संरचना किसी और से नहीं मिलती। ऐसे में जरूरी है कि हमारे शरीर का पोषण उसकी वात, पित्त या कफ प्रकृति को ध्यान में रख कर किया जाए, तभी हम स्वस्थ रह सकते हैं।


यानी जो खाना हमारे शरीर के विकास में सहायक होता है, वह हमारी बीमारियों का भी प्रमुख कारण बन सकता है। त्रिदोष असंतुलन की स्थिति में वात बढ़ने से 80, पित्त से 40 और कफ से 20 किस्म की बीमारियां हो सकती हैं। इसलिए शरीर की बनावट और उसकी भिन्नता के अनुसार खाना खाया जाए तो न केवल शरीर स्वस्थ रहेगा, बल्कि भविष्य में बीमारियों से लड़ने की ताकत भी मिलेगी। हमारा शरीर वात, पित्त या कफ में से किस प्रकृति का है, यह आयुर्वेद विशेषज्ञ ही बता सकते हैं।


हालांकि, ऐलोपैथी भी हड्डियों की बनावट और जेनेटिक्स के आधार पर शारीरिक संरचना को लगभग तीन भागों में बांटती है-एक्टमॉर्फ अक्सर दुबले-पतले होते हैं, जबकि एंडोमॉर्फ बॉडी टाइप के लोग भारी-भरकम होते हैं। तीसरे होते हैं मेसोमॉर्फ, जो दोनों का मिला-जुला रूप होते हैं। मेसोमॉर्फ का शरीर दुबला या मोटा दोनों दिशा में जा सकता है। एक्टमॉर्फ बहुत ही पतले होते हैं और अपनी इस बुनियादी प्रकृति के कारण उनके लिए वजन बढ़ाना बहुत मुश्किल होता है। वहीं एंडोमॉर्फ के लिए वजन कम कर पाना मुश्किल काम है। यह भी सच है कि हम अपने शरीर के जेनेटिक्स को नहीं बदल सकते, लेकिन पोषक और सही आहार तथा अपनी दिनचर्या को ठीक करके हम अपने शरीर को स्वस्थ जरूर रख सकते हैं।


  आधुनिक जीवन शैली में हमें अपने आप को पहचानना बहुत जरूरी है। वात, पित्त और कफ की प्रधानता वाले शरीर भोजन से मिलने वाली ऊर्जा के इस्तेमाल के तौर-तरीकों को दर्शाते हैं। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में आयुर्वेद विभाग के प्रोफेसर किशोर पटवर्धन का कहना है, ‘वात हमारी एनर्जी को बहुत ज्यादा खर्च करता है, पित्त शरीर में एनर्जी का संतुलन बनाए रखता है और कफ इसे जमा कर रखता है।



यहां यह समझना जरूरी है कि हर व्यक्ति में इन तीनों में से किसी एक की प्रमुखता होती है, पर यह तीनों ही हमारे शरीर में मौजूद होते हैं। कुछ लोगों में एक साथ दो तरह की प्रकृति भी पाई जाती है। चूंकि हमारे अंदर तीनों तरह की प्रकृति होती है, ऐसे में कौन सी प्रवृत्ति प्रमुख है, इसे पहचानना बहुत जरूरी है।’ प्रो. पटवर्धन का कहना है, ‘आयुर्वेदिक नजरिए से शरीर की बनावट के आधार पर भोजन पर जोर दिया जाता है। यह हमारे आधुनिक भोजन से काफी अलग है।



इसमें न केवल खाना, बल्कि व्यक्ति की प्रकृति और स्वभाव जैसी कई चीजों पर ध्यान दिया जाता है।’ दिल्ली की फिजिशियन डॉ. मीरा मलिक मानती हैं, ‘मौसम से लेकर आसपास के वातवरण में हमेशा इतने बदलाव होते रहते हैं, जो हर व्यक्ति पर असर डालते हैं। ऐसे में हर किसी की रोग प्रतिरोधक क्षमता अलग होती है। और हर किसी के लिए खाना भी अलग होता है। इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल की डायटेटिक्स विभाग की एचओडी डॉ. दीपिका अग्रवाल कहती हैं, ‘सही और संतुलित आहार न केवल हमें स्वस्थ बनाता है, बल्कि शरीर में विषैले पदार्थो की मात्रा को भी कम करता है।’ लेकिन, हमारे शरीर में यह विषैली चीजें आती कहां से हैं?


प्रोफेसर पटवर्धन बताते हैं, ‘बीमारियों की जड़ पाचन क्रिया से बची हुई चीजें ही हैं, जिनकी हमारे शरीर को कोई जरूरत नहीं होती। यह पदार्थ कोशिकाओं को हानि पहुंचाते हैं या उन्हें नष्ट कर देते हैं, जो बीमारी का कारण बनती हैं।’ वात प्रकृति के लोग हर समय तनाव में रहते हैं, ज्यादा बोलते हैं और इनके शरीर में सुस्ती होती है।


गुड़गांव की आयुर्वेद विशेषज्ञ नीलिमा जैन बताती हैं, ‘पाचन क्रिया कमजोर होने की वजह से इनके खाने की क्षमता भी कम होती है। ऐसे लोगों के लिए जरूरी है कि वे अपने खाने और सोने का शिडच्यूल बना लें। पित्त शरीर के लिए सबसे अच्छी प्रकृति है। इस प्रकृति वाले लोग आमतौर पर बहुत ही आकर्षक और तेज दिमाग वाले होते हैं। इस प्रकृति के लोगों के अंदर बहुत गर्मी होती है, इसलिए इन्हें गर्म चीजों को खाने से बचना चाहिए। इनके लिए ठंडी चीजें शरीर में सही संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। इन्हें सूर्य की सीधी किरणों से बचना चाहिए। ऐसे लोग रोज सुबह दौड़ने जाएं या जिम करें। दरअसल इस प्रकृति के लोगों में कॉम्पिटिशन की भावना बहुत अधिक होती है, जो कभी-कभी खतरनाक भी हो सकती है। कुछ काम केवल खुशी के लिए करें।


कफ प्रकृति के लोगों के लिए एक्सरसाइज काफी महत्वपूर्ण है। कफ बढ़ने के अनेक कारणों में एक कारण हमारा खानपान है। मिठाइयां, मक्खन, खजूर, नारियल, उड़द की दाल, केला, सुअर का मांस आदि का अधिक सेवन शरीर में कफ प्रवृत्ति को बढ़ाता है। दिन में सोने और फास्ट फूड के अधिक सेवन से भी शरीर में कफ बढ़ता है। आयुर्वेद शरीर की सभी गतिविधियों के मुताबिक समग्र रूप से काम करता है। इसी वजह से यह हमारे शरीर के निर्माण और उसकी रक्षा में मददगार है।


डॉ. जैन का कहना है, ‘इलाज के आधुनिक तरीके आमतौर पर शरीर के किसी एक भाग को लाभ पहुंचाने के लिए होते हैं। आयुर्वेद प्राकृतिक तरीके से शरीर को तंदुरुस्त रहने और अपनी रक्षा करने की क्षमता देता है।’ हम यदि अपनी प्रकृति को समझें और इसके मुताबिक अपने खानपान और आचरण को बेहतर बनाएं तो लंबी और सेहतमंद जिंदगी जी सकते हैं।

No comments: